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ज्ञानसार
प्रस्तुत अष्टक में पूज्य उपाध्यायजी महाराज ने भावपूजा के सम्बन्ध में उत्कृष्ट मार्गदर्शन किया है । साथ ही भावपूजा में प्रयुक्त होने का उपदेश मुनिश्रेष्ठों को दिया है । अभेदभाव से परमात्मस्वरुप को अनन्य उपासना का मार्ग बताया है ।
साथ ही साथ, गृहस्थ वर्ग के लिये भावपुजा का प्रकार बताकर गहस्थ मात्र को भी भेदोपासना की उच्च कक्षा वतायी है । ताकि वह परमात्मापासना में प्रवृत्त हो, आत्महित साव सके । अरे, प्रात्महितार्थ आत्म-कल्याणार्थ हो जो जावन व्यतीत कर रहा है-उसे यह विविध, उपासना का मार्ग काफी पसन्द आएगा और इस दिशा में निरंन्सर, गतिशील होगा ।
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