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२३. लोकसंज्ञा-त्याग
ज्ञानियों को अज्ञानियों की पद्धति पसंद नहीं ! अज्ञानांधकार में आकंठ डूबी दुनिया में रहे ज्ञानीपुरुष दुनिया के प्रवाह में नहीं बहते !
वे तो अपने ज्ञान-निर्धारित निश्चित मार्ग पर चलते रहते हैं ! दुनिया से वे सदा निश्चित-बेफिक्र होते हैं ! लोक की प्रसन्नता-अप्रसन्नता को लेकर कोई विचार नहीं करते ! उन का चिंतन-मनन ज्ञाननिर्धारित होता है । लोक प्रवाह...लोकसंज्ञा और लोकमार्ग से तत्त्वज्ञानी-दार्शनिक किस तरह अलिप्त होते हैं-यह तुम प्रस्तुत अष्टक पढने से समझ पाओगे ।
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