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ज्ञानसार
मनुष्य को दुराचारी, व्यभिचारी बनाने की योजनाएँ दिन-दहाडे कार्यान्वित हो रही हैं ! और लोक-प्रवाह के बहाव में सदैव बहनेबाले इसमें फंसे बिना नहीं रहते !
२. विधवाओं को पुनर्विवाह की सुविधा मिलनी चाहिए ! ३. सह-शिक्षा अवश्य हो, उसका विरोध क्यों ? ४. सिनेमा से मनोरंजन होता है....! ५. संसार में भी धर्माराधना कर सकते हैं ! मोक्ष-प्राप्ति होती
ऐसी मान्यता और मतों का समावेश लोक-प्रवाह में है। मुनिराज को चाहिए कि वह इन मान्यताओं का शिकार न बनें, बल्कि इसकी विरूद्ध दिशा में अपना जीवन-क्रम निरंतर जारी रखें। निर्भयता और नीडरता के साथ चलते रहे, वह किसी के बहकाव में न पायं। वह सदा-सर्वदा जिनेश्वर भगवान द्वारा निरूपित मार्ग का ही निष्ठापूर्वक अवलम्बन करता रहे। भगवंत की वाणी और सिद्धान्त से बढकर अपने सिद्धान्त और जीवन-दर्शन को महत्त्व न दें! वह लोक-प्रवाह के तीव्रवेग के बीच रह, जीवों की अज्ञानता को मिटाने का प्रयत्न करें, उन्हें मोह-व्यामोह के जाल से दूर रखने की कोशिश करें । उन्हें सत्य ऐसे मोक्ष-मार्ग की ओर प्रेरित करने का पुरूषार्थ करें।
मुनि तो राजहंस है। वह सिर्फ मोती ही चगता है। घास उस का खाद्य नहीं और कीचड वह नहीं उछालता । घास खाते और कीचड में सने जीव के लिए उसके मन में करुणा और दयार्द्रता उभर आये ! उन्हें मुक्ति दिलाने का प्रयत्न करे, ना कि स्वयं उन में एकरूप हो जाएँ।
अज्ञानियों की बातों में आकर उनके अविवेकपूर्ण मत और मान्यताओं को स्वीकृति देने की बुरी आदत से अपने को बाल-बाल बचाएँ। तभी मुनि-जोवन की मर्यादा और परम्परा में रह मोक्षमार्ग की पाराधना में आगे बढ सकेगा । लोक-संज्ञा के परित्याग हेतु उस में नि:स्पृहता, नीडरता और निर्भयता होना परमावश्यक है ! और इसके मूल में रहो ज्ञानदृष्टि होना इस से भी ज्यादा आवश्यक है ।
लोकमालम्ब्य कर्तव्यं कतं बहुभिरेव चेत् ! तथा मिथ्यादशां धर्मो न त्याज्य: स्यात् कदाचन ।।४।।१८०॥
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