________________
३६०
रखता ही है । ठीक उसी तरह परोक्ष-पदार्थों की दुनिया में शास्त्र - दीप का प्रकाश फैलाती 'बेटरी' की गरज है ही, वर्ना अज्ञान के गड्ढे में पांव पड जाएगा, राग का कांटा पाँव को आर-पार बींध देगा श्रीर मिथ्यात्व की चट्टानों से अनायास ही टकराने की नौबत आ जाएगी ! अतः सदा-सर्वदा शास्त्रज्ञान का दीप साथ में रखो ।
" तत्र
परोक्ष विश्व के रहस्यों का पता लगाना है न ? आत्मा, परमात्मा और मोक्ष की अपूर्व और अद्भुत सृष्टि का दर्शन करना है न आत्मा पर प्राच्छादित अनंत वर्मों के आवरण को उनकी जानकारी पाये बिना भला, कैसे हटा पाओगे ? कर्म - बंधनों को छिन्न-भिन्न कैसे कर सकोगे ? शास्त्र ज्ञान के दीप के बिना अनायास ही कर्म-बंधनों की तिमिराच्छन्न दुनिया में खो जाना पडेगा ।
ज्ञानसार
हां, संभव है कि परोक्ष-पदार्थों की परिशोध में तुम्हें जरा भी दिलचस्पी न हो, उनकी प्राप्ति के लिए तुम्हारे में उत्साह न हो और परोक्ष-पदार्थों के भंडार को पाने के लिए आवश्यक हिम्मत तुम जुटा न पाते हो, तब शास्त्रज्ञान पाने की अभिरूचि तुम्हारे में कभी पैदा नहीं होगी ।
वास्तविकता तो यह है कि परोक्ष-पदार्थों को जानने, समझने और परखने के लिए रस प्रचुरता चाहिए । अदम्य उत्साह चाहिए, प्राणों पर दाव लगाकर दुर्धर्ष संघर्ष करने का साहस चाहिए। तभी शास्त्ररूप दीपक प्राप्त करने की इच्छा जगेगी न ? परोक्ष-पदार्थों का प्रमाण, स्थान, मार्ग, पर्वत-मालाएँ, नदियां, वन, उपवन... साथ ही आवश्यक साधन और सावधानी के बिना, परोक्ष-दुनिया का प्रवास भला कैसे संभव है ?
इसके लिए आवश्यक है शास्त्रज्ञान ! हाँ, शास्त्रज्ञान की प्राप्ति का क्षयोपशम संभव न हो तो शास्त्रज्ञानी महापुरूषों का अनुसरण करना हितकर है । उन के आदेश और वाणी को शिरोधार्य करना । तभी तुम परोक्ष अर्थ के भंडार के निकट पहुँच पानोगे । अरे, द्राविड, वारिखिल्ल और पांडवों के साथ लाखों, करोंड़ो मुनि परोक्ष अर्थ के उच्चतम स्थान पर जा पहुँचे । किस तरह, जानते हो ? ज्ञानी महापुरूषों की सहायता से ! अतः मुनि के लिए शास्त्रज्ञान प्रावश्यक माना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org