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शास्त्र
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अर्थ :- शास्त्र रुपी दीपक के बिना परोक्ष अर्थ के पीछे दौडते अविवेकी
मानव, कदम-कदम पर ठोकर खाते अत्यधिक पीड़ा और दुःख
(क्लेश) पाते हैं ! विवेचन : जो प्रत्यक्ष नहीं है, कान से सूना नहीं जाता, आँखों से देखा नहीं जाता, नाक से सुधा नहीं जाता, जिह्वा से चखा नहीं जाता, और स्पर्श से अनुभव नहीं किया जाता...ऐसे परोक्ष पदार्थों का ज्ञान भला, तुम कैसे पा सकते हो ? न जाने कब से तुम भटक रहे हो ? कितनी ठोकरें खायी हैं ? कितनी पीडा और क्लेश सहना पडा है ? अरे भाग्यशाली, और कितना भटकोगे ?
ऐसे परोक्ष पदार्थों में मुख्य पदार्थ है आत्मा । परोक्ष पदार्थों में महत्वपूर्ण पदार्थ है मोक्ष । ठीक वैसे ही परोक्ष पदार्थों में नरक, स्वर्ग, पुण्य, पाप, महाविदेहादि अनेक क्षेत्र... आदि अनेक पदार्थों का स्मावेश होता है । इन परोक्ष पदार्थों की अद्भुत सृष्टि का एकमेव मार्गदर्शक (Guide) है शास्त्र । परोक्ष पदार्थों को सही अर्थ में बतानेवाला दीपक है शास्त्र । बिना शास्त्ररूपी 'गाइड' के तुम इन परोक्ष पदार्थों की सृष्टि में भटक जाओगे और हेरान-परेशान हो जाओगे । तुम इस तथ्य को अच्छी तरह जानते हो कि अंधा मनुष्य अनजाने प्रदेश में भटक जाता है । और तब तुम उद्विग्न होकर कह उठोगे कि 'यह सब निरी कल्पना है !'
शास्त्रों का स्पर्श किये बिना पाश्चात्य देशों की उच्चतम डिग्रियाँ प्राप्त कर विद्वान् कहलानेवाले और स्वयं को कुशाग्र बुद्धि के धनी समझने वाले मनुष्य, परोक्ष विश्व को मात्र कल्पना मान कर उस ओर दृष्टिपात भी नहीं करते !
लेकिन हे महामुनि ! तुम तो परोक्ष विश्व के अद्भुत रहस्य जानने-समझने के लिए प्रतिबद्ध हो। तुम्हें तो इन अगम-अगोचर के रहस्यों को जानना ही होगा । उसके लिए शास्त्रज्ञान का दीपक अपनाना ही होगा, अपने पास रखना हो होगा । अंधकार युक्त प्रदेश में विचरण करनेवाला अपने पास 'बेटरी' रखता ही है न ! किसी गड्ढे में पांव न पड़ जाए, कोई कांटा पैर में चुभ न जाए, किसी पत्थर से टकरा न जाए, अतः बेटरी को महत्वपूर्ण साधन समझ कर साथ में
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