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ज्ञानसार
मतलब ? इस के बावजूद धर्मकार्य में सदैव आत्म-साक्षी को प्रधान मान, मोक्ष-पथ पर गतिशील होना चाहिए ।
लोकसंशोझित: साधुः परब्रह्मसमाधिमान् ।
सुखमास्ते गतद्रोहममतामत्सरज्वर: ॥८॥१४८।। अर्थ : जिस के द्रोह-ममता और गुण-द्वेष रूपी ज्वर उतर गया है, और
जो लोक सांज्ञा-रहित परब्रह्म में समाधिस्थ हैं, ऐसे मुनि सदा-सर्वदा
सुखी रहते हैं। विवेचन : पूज्य गुरुदेव ! आप सुखपूर्वक रहें!
आपके मन में भला, किस बात का दुःख है ? आप की तो परब्रह्म में समाधि होती है। आप के सुख को उपमा भी कौन सी दी जाएँ ? मन के दुःख तो होते हैं पामर जीव को ! जो द्रोह से दग्ध है, जिस के मर्मस्थानों में ममता दंश मारती है और जिसे मत्सर का दाहज्वर प्राकुल-व्याकूल बनाता है। आप के मन में तो द्रोह, ममता और मत्सर के लिए कोई स्थान ही नहीं ! आपके सुख और शान्ति की कोई सीमा नहीं !
श्रमण को सुख-प्राप्ति के चार उपाय सुझाये हैं : १. परब्रह्म में समाधि २. द्रोह-त्याग ३. ममता-त्याग ४. मत्सर-त्याग
ब्रह्म का मतलब है संयम । संयम में पूर्ण लीनता ! संयम के सतरह प्रकार जानते हो....?
पञ्चाश्रवाद विरमणं पंचेन्द्रियनिग्रह : कषायजयः । दण्ड त्रयविरतिश्चेति संयमः सप्तदश भेदः ।।
-श्री प्रशमरति मिथ्यात्व, अविरति. कषाय, योग और प्रमाद, इन, पाँच प्राश्रवों से मुक्त बनो । अपनी पांच इन्द्रियों पर सदैव संयम रखो। क्रोध, मान, माया, लोभ-इन कषायों पर विजयश्री प्राप्त करो। मन, वचन, काया को अशुभ प्रवृत्तियों को लगाम दो। यही तुम्हारी सर्व-श्रेष्ठ समाधि है।
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