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भवोद्वेग
अथवा विनोद सर्वनाश को न्यौता देते देर नहीं करेंगे। ऐसे विकट समय में किसी अनुभवी परिपक्व मार्गदर्शक की शरण ही लेनी होगी । उस का अनुसरण करना पड़ेगा या नहीं ? सुयोग्य सुकानी के नेतृत्व पर विश्वास करना ही होगा, तभी हम सही-सलामत/सुरक्षित अपनी मंजिल तक पहुंच पायेंगे । प्रचंड वायु :- तृष्णा...पाँच इन्द्रियों के विषयों की कामना की प्रचंड वायु महासागर में पूरी शक्ति के साथ ताण्डव-नृत्य कर रही है। तृष्णा.... कितनी तृष्णा ! उसकी भी कोई हद होती है । मारे तृष्णा के जीव इधर-उधर निरुद्देश्य भटक रहा है। विषय सुख की लालसा के वशीभूत हो जीव कैसा घिर गया है ? जानते हो, यह प्रचंड वायु कहां से पैदा होती है ? पाताल-कलशों से । वही उसका उद्गम स्थान है । पाताल-कलश :- संसार-सागर में चार प्रकार के पाताल-कलश विद्यमान हैं : क्रोध ,मान, माया और लोभ ! इनमें से प्रचंड वायु उत्पन्न होती है और सागर में तूफान पैदा करती है....। ज्वार भाटा :- मन के विभिन्न विकल्पों का ज्वार-भाटा संसार सागर में आता रहता है। कषायों में से विषय-तृष्णा जागत होती है और विषयतृष्णा में से मानसिक विकल्प पैदा होते हैं । जानते हो, मानसिक विकल्पों का ज्वार कितना जबरदस्त होता है...? पूरे समुद्र में तूफान मा जाता है....। पानी की तरंगें किनारे को तोड़ती हुई भयानक दैत्य-सा रूप धारण कर लेती हैं । आम तौर पर समुद्र में पूर्णिमा की रात्रि को ही ज्वार प्राता है। लेकिन संसारसागर में तो निरंतर ज्वार आता रहता है । क्या तुमने कभी ज्वार के समय तूफानी स्वरुप धारण करते सागर को निकट से देखा है ? शायद नहीं देखा हो ! लेकिन अब मानसिक विकल्पों के ज्वार को अवश्य देखना ! उसे देखते ही तुम घबराहट से भर जाओगे । वडवानल :- कैसा दारूण वडवानल भभक रहा है !
कंदर्प के वडवानल में संसारसमुद्र का कौन-सा प्रवासी फँसा नहीं है ? इस दुनिया में कौन माई का लाल है, जो उक्त वडवानल की उग्र ज्वालाओं से बच पाया है ? उसमें राग का इन्धन डाला जाता है । राग के इन्धन से वडवानल सदा-सर्वदा प्रज्वलित रहता है ।
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