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१७. निर्भयता
जहां भय वहां अशांति चिरस्थायी है ! अतः निर्भय बनो। निर्भयता में असीम शांति है और अनिर्वचनीय आनंद भी ! भयभीतता की धू-धू जलती अग्नि से बाहर निकलने के लिए तुम्हें प्रस्तुत प्रकरण अवश्य पढना चाहिए ।
तुम्हारा मुखमंडल, निर्भयता को अद्भूत आभा से देदीप्यमान, परम तेजस्वी दृष्टिगोचर तो होगा ही, साथ हो जीवन से निराशा छू-मंतर हो जाएगी !
सुख के अनेक साधन उपलब्ध होने पर भी, यदि तुम्हारे मन में भय होगा तो तुम दुःखी ही रहोगे। सुखं के साधन कोई काम के नहीं रहेंगे ।
निर्भयता ही सच्चे सुख को जननी
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