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कर्मविपाक-चिन्तन
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चल रहा हो तब कुछ शुभ कर्मों का उदय भी उसके साथ-साथ हो सकता है । लेकिन प्रतिपक्षी नहीं । उदाहरण के लिए : यश का उदय हो तब उसके प्रतिपक्षी अपयश, यानी अशुभ कर्म का उदय नहीं होता, लेकिन बीमारी, जो स्वयं ही एक अशुभ कर्म हैं, का उदय संभव है ! क्योंकि बीमारी यह यश का प्रतिपक्षी कर्म नहीं है ।
जब तक कर्म हमारे अनुकूल हैं, तब तक जीव जो चाहे उत्पात, उघम और प्रांदोलन करें औौर हुंकार भरें, लेकिन जैसे ही अशुभ कर्मों का उदय हुआ नहीं कि जीव का उत्पात, उधम और उन्माद पलकझपकते न झपकते खत्म हो जाते हैं । गर्वहरण होता है और वह अपमानित हो दुनिया के मजाक का विषय बन जाता है । अतः कर्म का विज्ञान जानना आवश्यक है ।
जातिचातुर्यहीनोऽपि कर्मण्यभ्युदयावहे ।
अर्थ
क्षरणाद् रङ्कोऽपि राजा स्यात् छत्रछन्नदिगन्तरः ||३|| १६३ ।। : जब अभ्युarप्रेरक कर्मों का उदय होता है तब जाति और चातुर्य से हीन और रंक होने पर भी, क्षणार्ध में दिशाओं को छत्र से ढकने वा राजा बन जाता है ।
विवेचन : वह नीच जाति में जन्मा है, चतुराई और अक्लमंदी नामकी कोई चीज उस में नहीं है, फिर भी चुनाव में प्रचंड मत से चुन आता है, विजयी बनता है, मंत्री या मुख्य मंत्री के सर्वोच्च स्थान पर प्रारुढ़ होता है । आज के युग में राजा कोई बन नहीं सकता । राजा-महाराजानों के राज्य और सत्ता पेड़ से गिरे सुखे पत्ते की तरह नष्ट हो गई है । फिर भी चुनाव में विजयी जातिहीन मनुष्य राजाओं का राजा बन जाता है ।
आज सारे देश में 'जातिविहीन समाज रचना' की हवा पूरे जोर से बह रही है ! 'मनुष्यमात्र समान' सुक्ति के अनुसार हर जगह नोच जाति के लोगों को उच्च स्थानों पर बिठा दिये गये हैं और कुशाग्र बुद्धिवाले परमतेजस्वी उच्च जाति और वर्ण के व्यक्तियों को सरे ग्राम हेयदृष्टि से देखा जाता है....! आन्तरजातीय विवाह का सर्वत्र बोलबाला है ... और ऐसे विवाह रचानेवाले व्यक्ति तथा परिवारों को पुरस्कृतं कर प्रशासकीय स्तर पर सम्मानित किया जाता है । भले ही निम्न
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