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सर्व समृद्धि
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कहिए, कोई न्यूनता रह गयी है ? मुनिन्द्र, आपके पास विश्व की श्रेष्ठ संपत्ति उच्चतम वैभव और अमोघ शक्ति है । ऐसी दिव्यावस्था में आप के दिन रात कैसे गुजर जाएंगे, उस का पता तक नहीं चलेगा । प्रत: हे मुनिश्वर ! आप अपनी शक्ति, संपत्ति और अलौकिक समृद्धि को पहचानिए । साथ ही, इसके अतिरिक्त तुच्छ एवं प्रसार ऐसी पौद्गलिक संपत्ति की कामनायें छोड दें ।
विस्तारित क्रियाज्ञानचर्मच्छत्रो निवारयन् । मोहम्लेच्छमहावृष्टि चक्रर्षात न कि मुनिः ? ।।३।। १५५ ।।
अर्थ : क्रिया और ज्ञान रूपी चर्मरत्न एवं छत्ररत्न से जो युक्त हैं भोर मोहम्लेच्छों द्वारा महावृष्टि का जो निवारण करते हैं, क्या ऐसे महामुनि चक्रवर्ति नहीं हैं ?
विवेचन : हे मुनीश्वर, क्या आप चक्रवर्ती नहीं हैं ? अरे, प्राप तो भावचक्रवर्ती हैं। चक्रवर्ती की अपार समृद्धि तथा शक्ति के श्राप श्रागार हैं । यह क्या आप जानते हैं ?
आपके पास चर्मरत्न है । सम्यक् क्रिया का चर्मरत्न है ! श्राप के पास छत्ररत्न है । सम्यग् ज्ञान का छत्ररत्न है !
भले ही फिर मोहरूपी म्लेच्छ, मिथ्यात्व के दैत्यदल भेजकर तुम पर कुवासनाओं का शरसंधान कर दें ! चर्मरत्न और छत्ररत्न प्रापका बाल भी बांका नहीं होने देंगे ।
आप में यह खुमारी अवश्य होनी चाहिए कि, ' में चक्रवर्ती हूं।' साथ ही, इस बात का गर्व होना चाहिए कि " मेरे पास चर्मरत्न और छत्ररत्न है ।" इस प्रकार के गर्व और खुमारी से आप दीन नहीं बनेंगे, कभी हताश नहीं होंगे, कायर नहीं होंगे ।
फिर भले ही मोहम्लेच्छ कैसा भी जाल बिछाएं, जैसा चाहे वैसी व्यूह-रचना कर दे, तुम्हारे इर्द-गिर्द मिथ्यात्व के भयंकर दैत्यों का पहरा बिठा दें, और तुम्हें उलझानेवाली विविध वासनाओं की बौछार कर दे, लेकिन श्राप निर्भय बनकर पूरी शक्ति से उस का सामना करना । यदि तुम सम्यक् क्रियाओं में निमग्न होंगे तो वासना के तीर आपका कुछ नहीं बिगाड़ेंगे ! यदि तुम सम्यग् - ज्ञान में मग्न होंगे तो
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