________________
सर्वसमृदि
२८९
क्या आप ने नरकगति का उच्छेदन नहीं किया है ? नरकासुर का मतलब नरकगति ! चारित्र के अमोध शस्त्र से आप ने नरकगति का विच्छेद किया है, नाश किया है ।।
___ आत्मसुख के समुद्र में आप सोये हुए हैं। अब आप ही बताइए श्रीकृष्ण की विशेषताओं में प्राप की विशेषता कौन सी कम हैं ?
___किसी वस्तु को सामान्य रूप से देखना यानी दर्शन और विशेष रूप से देखना यानी ज्ञान । विश्व की जड़-चेतन वस्तुओं को मुनि सामान्य और विशेष-दोनों दृष्टि से परखता है। हर वस्तु में सामान्य और विशेष, दोनों स्वरूप समाविष्ट हैं। जब उसके सामान्य स्वरूप को देखा जाए तब दर्शन और विशिष्ट रूप में देखा जाए तब ज्ञान कहा जाता है ।
योगी का जीवन महाव्रतों से युक्त होता है । अत: वह मृत्यु के बाद नरक में नहीं जाता, अतः उसने नरकासुर का वध किया, ऐसा कहा जाता है । क्योंकि नरक का भय यह अपने माप में एकाध असुर से कम नहीं है । पवित्र पापरहित जीवन व्यतीत करने से ही यह भय दूर होता है।
आध्यात्मिक सुख के महोदधि में मुनि मस्त होकर शयन करता है । भले अरेबीयन महासागर सूख जाए, जल का थल हो जाय, और अथाह जलराशि रणप्रदेश में बदल जाए, लेकिन अध्यात्म-महोदधि कभी नहीं सुखता !
पूज्य उपाध्यायजी महाराज मुनि को अक्षय, अभय और स्वाधीन समृद्धि का सुख बताने हेतु प्रात्मभूमि पर ले जाकर, एक के बाद एक उत्तमोत्तम समृद्धि का दर्शन कराते जाते हैं।
संसार में श्रेष्ठ समझी जाने वाली समृद्धि के विविध स्वरूपों का निकट से दर्शन कराते हुए कहा है : “ तुम तो ऐसी संपत्ति के स्वयं अधिपति हो.... तुम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ समृद्धिवान और वैभवशाली हो । तुम दीन न बनो। भौतिक संपदा के प्रति भूल कर भो आकर्षित न हो। तुम देवेन्द्र हो, तुम चक्रवति हो, तुम महादेव शंकर हो और श्रीकृष्ण भी तुम ही हो ।
१६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org