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१५. विवेक
यहां संसार के व्यवहार में उपयोगी "विवेक" की बात नहीं है, बल्कि भेद-ज्ञान के विवेक की बात है । कर्म और जीव की जुदाई/भिन्नता का ज्ञान कराए वह विवेक ।
अनादिकाल से अविवेक के प्रगाढ़ अंधकार में खोये जीव को यदि विवेक का प्रकाश प्राप्त हो जाए तो उसका काम बन जाए !
परम विशुद्ध आत्मा में अशुद्धियाँ निहारना यह भी एक प्रकार से अविवेक ही है ।
विवेक के प्रखर प्रकाश में तो सिर्फ प्रात्मा की परम विशुद्ध अवस्था का ही दर्शन होता है । इसके अपूर्व प्रानंद का अनुभव करने के लिए प्रस्तुत अष्टक को ध्यानपूर्वक दो-तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए, और उसका चिंतन-मनन करना चाहिए।
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