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विवेक
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संभव है ? इतनी सहनशीलता, धैर्य और दृढ़ मन ! इसके पीछे कैसी अद्भुत शक्ति काम कर रही होगी ? कौन सा रहस्य छिपा होगा ? यह प्रश्न उठना साहजिक है। जानते हो वह अद्भुत शक्ति और रहस्य क्या था ? वह था भेदज्ञान ! अपूर्व विवेक-शक्ति ।।
शरीर से आत्मा की भिन्नता इस तरह समझ में आ जानी चाहिये ओर फलस्वरुप उसकी वासना इस तरह बन जानी चाहिए कि शरीर की वेदना, पीड़ा, व्याधि, रोगादि विकृतियाँ हमारे धति-भाव को विचलित करने में समर्थ न हों ! हमें संयमभाव से जरा भी चलित न कर सके। भले ही फिर हम पर तलवार का वार हो या छरे का प्रहार हो । चाहे कोई 'स्टेनगन' की गोलियों से शरीर को छलनी-छलनी कर दें। शरीर....प्रात्मा के भेद-ज्ञान की भावना अगर जागृत हो गयी है तो फिर हम में अधृति और असंयम की भावना कतई पैदा नहीं होगी।
झांझरिया मुनिवर पर तलवार का प्रहार किया गया, खंधकसूरिजी के पांच सौ शिष्यों को कोल्हू में पीला गया, गजसुकुमाल मुनि के सिर पर अंगारों से भरा मिट्टी का पात्र रखा गया, अरे ! अयवंती-सुकुमार मुनिवर के शरीर को सियारनी ने फाड़ खाया, फिर भी इन महात्माओं ने इसका किंचित भी विरोध या प्रतिकार न किया, बल्कि अद्भुत धैर्य, स्थिरता, अप्रमत्तता का परिचय देते हुए, धर्मध्यान और शुक्लध्यान में लीन रहे, मोक्ष-मार्ग की अंतिम मंजिल पार कर गये । इन सब घटनाओं के पीछे कोई अदृष्य शक्ति अथवा रहस्य है, तो वही भेद-ज्ञान और विवेक है ।
यदि भेदज्ञान का अभ्यास, चिंतन, मनन और प्रयोग जीवन में निरंतर चालु रहेगा, तभी मृत्यु के समय वह ( भेदज्ञान ) हमारी रक्षा करेगा ! भेदज्ञान केवल बातों में न हो, व्यवहार में भी होना आवश्यक है । सतत चितन और मनन द्वारा उसे आत्मसात करना चाहिये । फलस्वरुप, जीवन के विविध प्रसंगों में शारीरिक-आर्थिक-पारिवारिक संकट काल में वह हमारी सुरक्षा करेगा । हमारी धृति और संयम को तीक्ष्ण शस्त्र का रुप प्रदान कर अनंतानंत कर्मों का क्षय करेगा।
जीव मात्र को ऐसे भेद-ज्ञान का शाश्वत विवेक प्राप्त हो ...।
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