________________
के बारे में गहराई में उतरना था, उसके बजाय बाहर उतरे इसलिए उतने ही फँसे। फिर आत्मा में नहीं रह पाते।
दादाश्री कहते हैं कि 'हमारी समझ में संपूर्ण रूप से आ गया है कि जगत् क्या है लेकिन विस्तार से पूरी तरह से नहीं जान पाए हैं।' समझने में समय नहीं लगता लेकिन डिटेल में जानने में ज्यादा समय लगता है।
सूझ अर्थात् दर्शन। ज्ञानी में बेहिसाब सूझ होती है। सामान्य लोगों में बूंद-बूंद होती है।
तीर्थंकरों की कितनी सुंदर सूक्ष्म खोज है! दर्शन और ज्ञान का कितना सूक्ष्म विवरण दिया है।
__ [४] ज्ञाता-दृष्टा, ज्ञायक देखना और जानना, क्या आत्मा के कर्म हैं? नहीं। वह आत्मा का मूल स्वभाव है। स्वभाव से बाहर निकलना, वही कर्म है। स्वभाव के विरुद्ध करना, वही कर्म है। आत्मा स्वभाव में रहे तो उसका फल क्या है? परमानंद।
ज्ञान क्रिया और दर्शन क्रिया दोनों आत्मा की क्रियाएँ हैं। ज्ञान उपयोग और दर्शन उपयोग। यह जो क्रियावाला पुद्गल है, वह खुद की क्रिया में परिणमन करता है। इन सभी क्रियाओं को देखनेवाला यह, ज्ञान उपयोग है। ज्ञानक्रिया से मोक्ष है और अज्ञान क्रिया से बंधन। व्यवस्थित करता है और उसे खुद जानता है, वह ज्ञानक्रिया है।
'ज्ञान क्रियाभ्याम मोक्ष' आत्मा में रहकर कर्मों का निकाल करना, सचमुच में वही ज्ञानक्रिया है। बाकी तो सभी अज्ञान क्रियाएँ हैं। ज्ञान हुए बिना ज्ञानक्रिया किस तरह से संभव है? ज्ञान धारा और क्रिया धारा दोनों अलग ही हैं।
ज्ञान मिलने के बाद महात्माओं में दर्शन खुल गया इसलिए दृष्टा पद रहता है। उसके बाद जितना अनुभव होता है उतना ज्ञाता रहा जा सकता है, और दादाश्री निरंतर ज्ञाता-दृष्टा रह पाते थे।
65