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[२.१३] नोकर्म
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बाधक नहीं होंगे। संसारमार्ग पर जा रहा होगा तो ये कर्म तुझे संसार में हेल्प करेंगे।
प्रश्नकर्ता : अब संसार में नोकर्म किस तरह मदद करते हैं?
दादाश्री : ये सब कर्म संसार में ही मदद करते हैं न? खाते हैं, पीते हैं, खेलते हैं, कूदते हैं, बीवी बच्चों के साथ घूमने जाते हैं, सिनेमा देखने जाते हैं, वे सभी नोकर्म हैं न!
प्रश्नकर्ता : किस तरह से ये मोक्षमार्ग में बाधक नहीं हैं?
दादाश्री : वह कर्ता नहीं है, इसिलए। इसका मालिकिपना नहीं है। दे आर नॉट रिस्पोन्सिबल फॉर ओनरशिप। नो टाइटल। मैंने ले लिए हैं। ओनरशिप और टाइटल दोनों ले लिए हैं मैंने। इसलिए जवाबदारी नहीं रहती उनकी।
प्रश्नकर्ता : कर्ताभाव क्यों नहीं है?
दादाश्री : 'आपको' जब ज्ञान दिया था, तब मैंने कहा था न, कि व्यवस्थित कर्ता है, आप कर्ता नहीं हो। ऐसा मैंने कहा था न, ऐसा आपको ध्यान में रहता है न?! इसलिए अब आप कर्ता नहीं रहे। अंदर कर्तापद रहा ही नहीं है आपको क्योंकि कर्तापद कब तक रहता है कि जब तक निश्चय से 'मैं चंदूभाई हूँ'। वास्तव में 'मैं चंदूभाई ही हूँ' यही कर्तापद है। वह तो गॉन (चला गया)। यानी कि अब वह नहीं रहा।
इसलिए आपके नोकर्म का फल उगेगा नहीं और उन लोगों का उगेगा क्योंकि आप इस नोकर्म के कर्ता नहीं रहे और वे कर्ता हैं इसीलिए 'मैंने किया' कहते ही उन्होंने इसे आधार दिया और आधार दिया इसीलिए कर्म बंधा। और अगर कहा कि 'मैंने नहीं किया' तो फिर निराधार हो गया, गिर गया। तो अगर कोई पूछे कि 'आपने नहीं किया तो किसने किया?' तब वह कहता है कि 'भाई, वह तो जाननेवाला जाने, मुझे किसी झंझट में नहीं पड़ना है। मैंने तो नहीं किया है यह। मुझे ऐसा अनुभव होता है कि मैंने तो नहीं किया।' होता है या नहीं होता है ऐसा?