________________
४१४
आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
दादाश्री : दो काम होंगे तभी आत्मा माना जाएगा न, नहीं तो कैसे
माना जाएगा?
प्रश्नकर्ता : वह कैसे ?
दादाश्री : सिर्फ देखनेवाला ही हो, लेकिन दृश्य नहीं हो तो वह देखेगा क्या? अर्थात् देखनेवाला वहाँ पर बंद हो जाता है। यानी कि दोनों होने चाहिए, देखने की चीज़ और जानने - देखनेवाला, दोनों होने चाहिए। एक से काम हो ही नहीं सकेगा न !
प्रश्नकर्ता : नहीं हो सकता लेकिन इसमें पढ़ना और बातें करना, ये दोनों चीज़ें क्यों कही गई हैं?
दादाश्री : उसमें आत्मा तो वही का वही है न! सभी में आत्मा ही है न! आत्मा देखता और जानता है, जो कुछ भी करें उसमें। करनेवाला करता है लेकिन अगर वह नहीं होगा तो आत्मा करेगा क्या?
प्रश्नकर्ता : और इन दोनों के बिना तो यह दुनिया हो ही नहीं सकती
न!
दादाश्री : उपस्थिति ही नहीं होगी । आत्मा होगा ही नहीं वहाँ पर । प्रश्नकर्ता : मतलब ?
दादाश्री : देखनेवाला एक हो जाए तो आत्मा नहीं रहेगा। सिर्फ देखनेवाला रहे और देखने की चीज़ न हो, तो देखनेवाला बंद हो जाएगा फिर। उसकी उपस्थिति ही नहीं रहेगी ।
प्रश्नकर्ता : दिखाई देनेवाली चीज़ के आधार पर देखनेवाला है?
दादाश्री : हाँ, तभी हो सकता है न!
प्रश्नकर्ता : ज्ञेय तो जगत् में रहनेवाले हैं ही न?
दादाश्री : लेकिन लोग ज्ञेय को हटाते हैं । ज्ञेय को हटाते हैं इसलिए आत्मा भी हट जाता है। दोनों होने चाहिए। व्यवहार ज्ञेय है और आत्मा ज्ञाता है।