Book Title: Aptavani Shreni 13 Purvarddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 517
________________ ४२४ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) (दखलंदाजी) में पड़ा है। और देह का स्वभाव कैसा है? सहज है। अगर (व्यवहार) आत्मा डखोडखल नहीं करे तो देह सहज है। देह भी अलग और आत्मा भी अलग। वह डखोडखल से बंधन में है। अतः हम ये डखोडखल बंद करवा देते हैं। तू यह (चंदूभाई) नहीं है, तू यह (आत्मा) है। तब वह डखोडखल बंद कर देता है। अहंकार-ममता चले गए। अब जितनी तू डखोडखल बंद करेगा उतना ही उस (आत्मा) रूप होता जाएगा, सहजरूप। सहज अर्थात् डखोडखल नहीं करना। यह अपने आप चल रहा है और यह भी अपने आप चल रहा है। ये दोनों अपने-अपने तरीके से चलते रहते हैं। आत्मा अपने स्वभाव में रहता है और यह देह अपने स्वभाव में रहती है, देहाध्यास चले जाने के कारण। देहाध्यास दोनों के एकाकार होने का संधिस्थान था। वह देहाध्यास चला गया अतः अब यह देह, देह के काम में और आत्मा अपने काम में, उसी को सहजता कहते हैं। यह अभी हम जो डखोडखल करते हैं, वह आपकी डखोडखल निकालने के लिए हैं। फिर अगर किसी को ऐसा लगे कि दादा खुद ही डखोडखल करते हैं तो उसे अभी तक समझ में नहीं आया है। वे तेरी डखोडखल निकालने के लिए कर रहे हैं। वे अपनी डखोडखल निकालकर आराम से बैठे हैं और तेरी निकाल देते हैं। डाँटकर नहीं, हँसा-हँसाकर। जैसे हँसाने की शर्त न लगाई हो हमने! यह तो ज्ञानीपुरुष आपकी दखल वगैरह, डखोडखल सारी बंद कर देते हैं और हँसा-हँसाकर आगे ले जाते हैं। मूल आत्मा और प्रकृति सहज हैं लेकिन व्यवहार आत्मा असहज प्रश्नकर्ता : मन-वचन-काया की सहजता और आत्मा की सहजता के बारे में ज़रा समझाइए न! दादाश्री : आत्मा सहज ही है। यह ज्ञान देने के बाद शुद्धात्मा लक्ष में आता है न, वह अपने आप ही लक्ष में आ जाता है। हमें याद नहीं करना पड़ता। जिसे याद रखें उस चीज़ को भूल जाते हैं। यह तो निरंतर लक्ष में

Loading...

Page Navigation
1 ... 515 516 517 518