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[३.२] दर्शन सामान्य भाव से, ज्ञान विशेष भाव से
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प्रश्नकर्ता : आपने कहा कि यह जगत् क्या है वह हमें समझ में आ गया है लेकिन जानपने में नहीं आया है। जानपने का मतलब क्या होता है?
दादाश्री : ब्योरेवार, डिटेल्स। प्रश्नकर्ता : डिटेल्स से नहीं आया ऐसा कहें तो चलेगा? दादाश्री : हाँ, ऐसा कहे तो चलेगा।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दोनों में काल तो है न? समझने के लिए भी समय चाहिए न और जानने के लिए भी समय चाहिए? दोनों में टाइम लगता
है?
दादाश्री : समय की ज़रूरत है। लेकिन समझ में टाइम नहीं लगता। ज्ञानपने में टाइम लगता है।
प्रश्नकर्ता : दर्शन और ज्ञान के बीच अंतर होता है या नहीं, समय का?
दादाश्री : थोड़ा।
प्रश्नकर्ता : वह गाय देखने जाता है। आवाज़ हो तब कुछ है,' ऐसा लगता है लेकिन जो गाय है, वह देखने का ज्ञान जो होता है.....
दादाश्री : हाँ, डिसीज़न आने में टाइम लगता है न! दर्शन का परिणाम ही ज्ञान है। लेकिन भगवान ने ज्ञान को महत्व नहीं दिया है। दर्शन को महत्व दिया है।
इसीलिए रुका है केवलज्ञान प्रश्नकर्ता : तो फिर ऋषभदेव भगवान ने किस आधार पर कहा था कि 'यह चौबीसवाँ तीर्थंकर बनेगा,' यदि काल तय नहीं हो तो?
दादाश्री : उनके ज्ञान में तो सब होता है न कि 'यह व्यक्ति इतना, ऐसा-ऐसा भटक-भटककर, इस तरह होनेवाला है।' ऐसा सब उन्हें ज्ञान में दिखता है। उनके सारे आवरण खुल जाते हैं और सब दिखता है। हमें