________________
[३.२] दर्शन सामान्य भाव से, ज्ञान विशेष भाव से
३६१
प्रश्नकर्ता : तो किसी भी व्यक्ति के कोई भी संयोग स्पष्ट दर्शन में आ जाते हैं या उन पर उपयोग रखना पड़ता है?
दादाश्री : नहीं, वे दर्शन में आ जाते हैं। पूरे जगत् के सभी पर्याय दर्शन में आ जाते हैं। केवलदर्शन। उस दर्शन की शुरुआत कहाँ से होती है? दर्शन तो जीवमात्र में होता है, उसे लोग सूझ कहते हैं जिसके आधार पर जीव काम कर रहा है। उसका अगर कोई आधार हो तो वह सिर्फ सूझ है। सिर्फ दर्शन ही है, सिर्फ सूझ ही है। वह जब अंदर से रुक जाता है न, तब खुद उलझन में पड़ जाता है और चारों तरफ से दुनिया उसे दु:खी कर देती है। उसे दुःखी करके परेशान कर देती है और फिर वह थोड़ी देर बैठा रहता है या फिर उल्टा होकर सो जाता है कि इतने में उसे अंदर प्रकाश हो जाता है। फिर चलने लगता है तेज़ी से। उसे अंदर से सूझ पड़ जाती है।
प्रश्नकर्ता : तो क्या ज्ञानी की सूझ की रेन्ज बहुत बड़ी होती है, दादा?
दादाश्री : उनमें तो सूझ का बहुत बड़ा प्रपात फूटता है। जबकि इनमें छोटी सी धारा बहती है और ज्ञानी में तो बड़ा प्रपात फूटता है।
प्रश्नकर्ता : तो सबकुछ स्पष्टरूप से पता चल जाता है, दादा।
दादाश्री : हाँ, ये दर्शन और ज्ञान के बारे में हम जो जवाब देते हैं न, वह जवाब तो ऐसे हैं कि शास्त्र में भी न मिलें।
कितनी सूक्ष्म समझ तीर्थंकरों की आज यह बात लोगों को समझ में नहीं आती, तो फिर जिन पुरुषों ने इस बात को समझा है, जिन्होंने कही होगी, वह कैसी होगी? वे अपने देश में ही जन्मे थे!
प्रश्नकर्ता : उन्होंने ये सब बातें की, तब क्या समाज डेवेलप्ड नहीं था? बहुत पहले बात कर गए होंगे?
दादाश्री : समाज तो बहुत डेवेलप्ड था उस समय। प्रश्नकर्ता : तो क्या फिर अभी नहीं है?