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[४] ज्ञाता-दृष्टा, ज्ञायक
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दादाश्री : नहीं, वे ज्ञानीपुरुष होते हैं। प्रश्नकर्ता : ज्ञानीपुरष यानी ए.एम.पटेल?
दादाश्री : नहीं ए.एम.पटेल तो यह बॉडी है। उस समय हम ज्ञानीपुरुष, वर्ना विधि फलेगी नहीं इनकी और हमें कोई ऐसी जल्दबाज़ी नहीं है कि कल ही मोक्ष में जाना है।
प्रश्नकर्ता : जब आप विधि कर रहे होते हैं तब आप ज्ञानीपुरुष, तो फिर दादा भगवान कहाँ जाते हैं तब?
दादाश्री : दादा भगवान तो उसी जगह पर बैठे हैं। मेरी उस तरफ की दृष्टि कम हो जाती है, बंद हो जाती है। हमारी दृष्टि उस घड़ी सीमंधर स्वामी में होती है, किसी दूसरी जगह पर होती है। आपके लिए विधि करनी होती है उस समय।
अवस्थाओं में अस्वस्थ, स्व में स्वस्थ जो अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं, वे सभी अवस्थाएँ विनाशी हैं और यह जो है, वह अवस्था में रहता है इसलिए अस्वस्थ रहता है। स्व अविनाशी है, अगर उस अविनाशी में रहे तो स्वस्थ रह सकता है वर्ना अस्वस्थ ही रहेगा।
प्रश्नकर्ता : वह खुद देख सकता है और जान सकता है कि यह अवस्था में अस्वस्थ है, इसके बावजूद भी स्वस्थ नहीं रह पाता?
दादाश्री : हाँ, वह देख सकता है। इसके बावजूद भी अस्वस्थता नहीं जाती। वहाँ पर क्या होता है कि जो देखनेवाला है, वह दादा द्वारा दिया गया आत्मा है। इसे देखनेवाला शुद्धात्मा ही है। हम सब उसी रूप में रहें तो कोई झंझट ही नहीं है। वर्ना तो स्वस्थ और अस्वस्थ का तो अंत ही नहीं आ पाएगा।
प्रश्नकर्ता : उसकी चाबी कौन सी है? दादाश्री : चाबी? इन सब में अस्वस्थ रहे या स्वस्थ रहे, दोनों का