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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
जानकार शुद्धात्मा है। अस्वस्थ रहता है तब खुद उसमें हाथ डालता है, फॉरेन में। फॉरेन में हाथ नहीं डालना चाहिए उसे। स्वस्थ हो जाए या अस्वस्थ रहे, हमें तो जानने से काम है। ये सभी पौद्गलिक अवस्थाएँ हैं और जो पौद्गलिक अवस्थाओं को जानता है, वह शुद्धात्मा कहलाता है। पौद्गलिक अर्थात् जो पूरण-गलनवाला है। आपको अस्वस्थता कब आती है? यदि पूरण की हुई होगी, तभी वह इस समय आएगी। अभी आने के बाद उसका गलन हो जाता है।
फॉरेन में हाथ डाला तो जले बगैर रहेगा ही नहीं। उसमें हम हाथ नहीं डालते और हम दूसरों से भी कहते हैं कि 'भाई, हाथ मत डालना।' क्योंकि यों तो जो भी फल मिलना था, वह तो मिलने ही वाला है। इसके अलावा यदि उसने हाथ डाला तो उसका उसे डबल फल मिलता है। दो नुकसान उठाता हैं। तो हम एक ही नुकसान उठाएँ न। अस्वस्थता, अस्वस्थता 'चंदूभाई' को है। आपको इतना जानते रहना है कि अस्वस्थ है। अस्वस्थ है वह पंद्रह मिनट के बाद खत्म हो जाएगी। अगर देखते रहोगे तो दो नुकसान नहीं होंगे।
प्रश्नकर्ता : अवस्था का समय जितना अधिक खिंचे आवरण उतना ही अधिक कहलाएगा?
दादाश्री : हाँ, जितना आवरण होगा उतना खिंचता रहेगा, लेकिन यदि आप शुद्धात्मा की तरह देखते रहोगे न तो फिर आवरण भले ही कितना भी हो फिर भी वह जल्दी से चला जाएगा, एकदम से। उसका निबेड़ा आ जाएगा। लेकिन अगर उसमें खुद हाथ डालने गया तो झंझट खड़ा हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : तो जागृति किसमें रखनी है?
दादाश्री : देखने में, उसी में जागृति रखनी है। देखने में तन्मयाकार नहीं हो जाए तो उसे जागृति कहते हैं। दृष्टा और दृश्य दोनों जुदा रहने चाहिए, इसी को जागृति कहते हैं।
'क्या है' उसे देखते हैं और क्या हो रहा है' उसे देखते हैं, दादा