________________
३८८
आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
जाएगा, उसके बाद फिर यह ज्ञेय बनेगा। निकाल करना है, उतना भी पता नहीं होगा।' अब जो ज्ञेय है, वह ज्ञाता नहीं बना है, उसका क्या कारण है? तो वह है, जिसे त्याग करना पड़ता है, जिसके लिए ऐसा सब है कि ऐसे करना चाहिए और ऐसे करना चाहिए,' वे सब आत्मा को ज्ञेय कहते हैं। खुद ने (आत्मा को) जाना नहीं है, इसलिए यह त्याग का रस्ता ढूंढा।
प्रश्नकर्ता : जिन्होंने आत्मा को नहीं जाना है, उनके लिए आत्मा ज्ञेय है।
दादाश्री : उन्हें जो सम्यक् दर्शन हुआ है, तो उससे कुछ भाग जाना है आत्मा का। उन्होंने सर्वस्व प्रकार से आत्मा को नहीं जाना है। ये क्रमिक मार्ग के ज्ञानी आत्मा को सर्वस्व प्रकार से अंतिम अवतार में जान पाते हैं। तब तक अंहकार संपूर्णरूप से नहीं जाता। और अहंकार की हाज़िरी में वह ज्ञाता नहीं कहला सकता।
प्रश्नकर्ता : अहंकार की हाज़िरी में ज्ञाता नहीं कहला सकता, यह अब समझ में आ रहा है। यह सारा अब सेट हो गया है।
दादाश्री : तीन गाँठवाला लाओ कि मेरा सेट नहीं हुआ है, तो मुझे तीनों गाँठे छोड़नी पड़ेंगी। नहीं छोड़नी पड़ेंगी?
प्रश्नकर्ता : छोड़नी पड़ेंगी दादा।
दादाश्री : जबकि सभी लोग क्या कहते हैं कि एक ही शब्द में सबकुछ पूरा कर देते थे न! उन लोगों ने एक ही गाँठ बाँधी थी। जिसने तीन बाँधी हुई हों तो वह जब तीनों छोड़ देगा तभी उसे पूरा संतोष होगा न? कितनी गाँठें बाँधी हैं उसका उसे पता चलता है। अब नहीं बाँधनी हैं, लेकिन जो बाँधी हुई हैं वे कितनी हैं, अब उसे हम जानते हैं।
जाननेवाला निर्दोष है सदा प्रश्नकर्ता : अपने अंदर जो कुछ भी चल रहा हो कोई भी विचार, वाणी या जो कुछ भी आए, उसे हम जानते हैं लेकिन उसे दोष क्यों कहा जाता है?