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[४] ज्ञाता-दृष्टा, ज्ञायक
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प्रश्नकर्ता : वह तो फिर जब तक यह देह है तब तक ऐसा सब तो चलता ही रहेगा।
दादाश्री : नहीं ऐसा कोई नियम नहीं है। प्रश्नकर्ता : व्यवहार तो रहेगा ही न सारा....
दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है, वह तो दिनोंदिन कम होता जाता है न। रात पड़े तब कितनी बसें आती हैं फिर? यानी कि कम होता जाता है!
प्रश्नकर्ता : अभी तो चंदूभाई की रात तो मरने के बाद पड़ेगी न?
दादाश्री : वह तो, सभी कर्मों का अंत आ गया। इस हिसाब का ही अंत आ गया और जबकि उसमें तो अपना जब भरा हुआ माल खाली हो जाता है और उसके बाद निर्मलता रहती है।
यानी कि इसी जन्म में खाली हो जाएगा। कभी न कभी ज़रा कम ज़्यादा तो होता है लेकिन नई आमदनी नहीं हो और पुरानी जा रही हो तो क्या कुछ रहेगा? नहीं, कुछ भी नहीं रहेगा। कुछ समय में दो-चार सालों में सब खाली हो जाएगा। मेरा कभी का खाली हो गया है न! मैं आपको ऐसा कहता हूँ कि खाली हो जाएगा। अड़चन आए, तो उसमें कोई घबराने का कारण नहीं है। अंदर उलझन खड़ी हो रही हो तो 'मेरा नहीं है' इतना कहते ही अलग हो जाएगा। वह सब चंदूभाई का है। वह तो पकड़ने जाता है आपको! पहले की आदत है न, आदत है न? इसलिए 'मेरा नहीं है' कहते ही वह छूट जाएगा। उसमें वह क्या पूछता है कि 'आपकी बाउन्ड्री का या उस बाउन्ड्री का?' तब अगर कहो कि 'हमारी नहीं है।' तो वह छूट जाएगा। मैं तो कितना कह पाऊँगा? तो यह कहा हुआ लिखोगे तो कब अंत आएगा। मैं तो कहता ही रहूँगा।
प्रश्नकर्ता : आप जो कुछ कहते हैं, वह सब लिख लिया जाता है।
दादाश्री : उसे लिखता रहेगा तो कब अंत आएगा? इनका बोलना बंद नहीं होगा और आपका लिखना बंद नहीं होगा....पूरी जिंदगी क्या लिखते ही रहना है, हे?