________________
[४] ज्ञाता-दृष्टा, ज्ञायक
३६५
ऐसा जानते हो कि 'चंदूभाई कर रहे हैं,' 'व्यवस्थित' कर्ता है ऐसा जानते हो। आप उसे देखते रहते हो, वह ज्ञानक्रिया है।
अब वहाँ पर अभी सब लोगों की समझ में कैसा रहता है कि 'ज्ञान और क्रिया, ज्ञान क्रियाभ्याम मोक्ष। अर्थात् इन शास्त्रों के आधार पर उन्हें ज्ञान भी है और हम ये क्रियाएँ भी कर रहे हैं लेकिन वे क्रियाएँ तो अज्ञान क्रिया कहलाती हैं जबकि आप ज्ञानक्रिया करते हो। आप जो निकाल करते हो, वह सब ज्ञानक्रिया कहलाती है। उस ज्ञानक्रिया से मोक्ष है। जो कुछ भी क्रिया ज्ञान सहित होती है, उसके आधार पर मोक्ष होता है। ज्ञान उपयोग को ज्ञानक्रिया कहते हैं। और ज्ञानक्रिया से यह सारा हल आ गया।
'देखना और जानना,' वे दोनों इसके गुण हैं जबकि करना' पुद्गल का गुण है।
ज्ञानधारा और क्रियाधारा दोनों चलते हैं भिन्न प्रश्नकर्ता : तो मैं यह समझना चाहता था कि यह कर्तृत्व की धारा और ज्ञातृत्व की धारा एक साथ नहीं चल सकतीः ऐसा कहा गया था लेकिन अपने यहाँ क्या दोनों एक साथ चलनी ही चाहिए?
दादाश्री : नहीं। एक साथ नहीं चलनी चाहिए। ऐसा है न कि कर्तृत्व की जो धारा आती है, वह उदय के अधीन है और हम ज्ञाता है।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् वह हो रही है और यह देखनेवाला है।
दादाश्री : हाँ, वह हो रहा है और यह देखता रहता है। दूसरा कोई खेल नहीं करना है। जो चंदूभाई को जानता है वही आत्मा है, शुद्धात्मा है क्योंकि करनेवाला और जाननेवाला दोनों का व्यवहार जो एक था वह अब अलग-अलग हो गया है। पहले दोनों का व्यापार साझा था कि करनेवाला भी मैं और जाननेवाला भी मैं । अर्थात् क्या हो रहा था? दोनों धारा, जानने की धारा अमृतधारा है और करने की धारा वह विषधारा है, दोनों धाराएँ इकट्ठी चल रही थीं, अतः ज्ञान के बाद हम सब में क्या हुआ है? दोनों धाराओं को अलग कर दिया है। अब यह शुद्धात्मा की अमृतधारा अलग