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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
दिखता नहीं है, समझ में आता है। हमें सब समझ में आता है और उन्हें दिखाई देता है।
प्रश्नकर्ता : समझ में आना अर्थात् क्या? दादाश्री : समझ में आना और जानना, दोनों में फर्क है।
प्रश्नकर्ता : ऋषभदेव भगवान को दिखाई देता था और आपको समझ में आता है, उसमें क्या फर्क है?
दादाश्री : 'समझ में आना,' इसका अर्थ क्या है? इसका अर्थ यह है कि खुद को ऐसा लगता है कि 'कुछ है,' उसे कहते हैं समझ में आना।
और यह है उसे कहते हैं ज्ञान में आया। डिसीज़न आना, वह ज्ञान है और डिसीज़न नहीं आया और ऐसा आभास हुआ कि 'कुछ है' तो उसे कहते हैं समझ। यह कुछ है, ऐसा जो आभास होता है, वह एक प्रकार का ज्ञान है लेकिन वह समझरूपी ज्ञान है।
प्रश्नकर्ता : जो दिखाई दिया वह समझ में आया और जिसे जाना वह ज्ञान में आया। देखने में और जानने में बहुत फर्क है।
दादाश्री : देखने और जानने में बहुत फर्क है। हमने पूरा जगत् देखा ही है न, अभी तक जानने में नहीं आया है इसीलिए हमारा केवलज्ञान रुका हुआ है, केवलदर्शन में है यह।
प्रश्नकर्ता : हम ऐसा कहते हैं कि 'दादा को केवलदर्शन है,' तो उसमें क्या होता होगा?
दादाश्री : अर्थात् वहाँ पर समझ में है कि यह जगत् केवल समझ में आया है अर्थात् जैसा है वैसा समझ में आया है लेकिन वह ज्ञान में नहीं आया है। समझ में आए हुए को खुद जान ज़रूर सकता है लेकिन उसमें बरत नहीं सकता।
प्रश्नकर्ता : ऐसा ही है, ऐसा ही है, ऐसा समझ में आता है। दादाश्री : हाँ, लेकिन इसमें बरत नहीं सकते वे पूरी तरह से।