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[३.१] 'कुछ है' वह दर्शन, 'क्या है' वह ज्ञान
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सकता। इसके (आत्मा के) भान से देखना है, इसके अनुभव भान से, अनुभव दृष्टि से।
मेरी यह बात आपको समझ में आती है, वह दर्शन कहलाती है और जैसा मैंने आपको समझाया है, वैसा ही आप किसी को समझाओ तब आपका ज्ञान हुआ कहलाएगा और उसके लिए वह दर्शन कहलाएगा।
प्रश्नकर्ता : लेकिन वह उसे पकड़ नहीं पाएगा न, आप उस दृष्टि से नहीं कहते हैं न।
दादाश्री : वह खुद की समझ में रहता है। समझना और कहना, अर्थात् कहना तो, जानने के आधार पर कहा जा सकता है।
जितना समझते हैं उतना जाना नहीं जा सकता इस दुनिया में। वह जानी हुई चीज़ समझ में होती है लेकिन समझी हुई चीज़ जानने में नहीं होती। मुझे समझ तो सारी ही है लो, लेकिन जानपने में नहीं होने की वजह से वह आपको बता नहीं पाते हैं।