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[२.१४] द्रव्यकर्म + भावकर्म + नोकर्म
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उल्टी दृष्टि, इसीलिए भावकर्म इंसान को द्रव्यकर्म करने नहीं होते, भावकर्म में से उत्पन्न हो जाते हैं। ये द्रव्यकर्म अपने आप फल देते ही रहते हैं। आपको सभी नोकर्म करने हैं। यदि ये भावकर्म नहीं होंगे तो नोकर्म स्पर्श नहीं करेंगे। भावकर्म हो तो नोकर्म हेल्प करते हैं। अच्छे करो तो पुण्य का बंधन होता है, बुरे करो तो पाप का बंधन होता है लेकिन अगर भावकर्म का हस्तक्षेप हो तभी होता
है।
यह 'दृष्टि' बदल गई है और उल्टी हो गई है इसलिए भावकर्म शुरू हो जाते हैं, विशेषभाव। स्वभाव भाव नहीं लेकिन विशेषभाव। अंदर ये भावकर्म होते ही रहते हैं। उल्टी दृष्टि है इसलिए। ये हमारे साले हैं और ये मेरे ये हैं और वो हैं वगैरह! 'मैं यह कर रहा हूँ और मैं वह कर रहा हूँ,' ये सभी भावकर्म हैं। ये सभी ऐसे हैं कि बीज डाल दें।
जहाँ समता वहाँ चार्ज बंद इन द्रव्यकर्मों में से भावकर्म उत्पन्न होते हैं। ऐसा है न, कड़वा और मीठा दोनों समभाव से सहन नहीं हो पाते इसलिए कड़वे पर द्वेष है और मीठे पर राग है, इसलिए कर्म बंधते हैं। कड़वे-मीठे में समभाव हो जाए तो कर्म नहीं बंधते।
प्रश्नकर्ता : भावकर्म अर्थात् द्रव्यकर्म द्वारा जो कोई परिस्थिति आई....
दादाश्री : ये द्रव्यकर्म हैं इसीलिए क्रोध-मान-माया-लोभ होते हैं, वे सभी भावकर्म हैं। लेकिन जिन्हें नहीं करने हों, जिनके पास ज्ञान हो, वे नहीं करेंगे। मीठे संयोग आते हैं तब खुश हो जाता है और कड़वे संयोग आएँ तब चिढ़ जाता है, इसी तरह चलता रहता है। लेकिन अगर वहाँ पर समता रखे तो कोई कर्म नहीं बंधेगा।
प्रश्नकर्ता : तो फिर जो होते हैं, जीव के अंदर जो क्रोध-मानमाया-लोभ होते हैं, वे....