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[२.१४] द्रव्यकर्म + भावकर्म + नोकर्म
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को स्थूल में ही समझते हैं। भाव अर्थात् सूक्ष्म और द्रव्य अर्थात् स्थूल ऐसा समझते हैं। वास्तव में द्रव्य तो सूक्ष्म से भी आगे की चीज़ है। अब वह लोगों को कैसे समझ में आए? सब चीज़ समझ में नहीं आ सकती न! चल रहा है!
प्रश्नकर्ता : बहुत स्पष्ट नहीं हुआ अभी तक। दादाश्री : नोकर्म अर्थात् डिस्चार्ज, पूरा स्थूल। प्रश्नकर्ता : द्रव्यकर्म और नोकर्म एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं लगते?
दादाश्री : ऐसा है न, द्रव्यकर्म में से भावकर्म उत्पन्न होते हैं और भावकर्म में से नोकर्म उत्पन्न होते समय दूसरे द्रव्यकर्म बदलते हैं।
प्रश्नकर्ता : एक उदाहरण दीजिए।
दादाश्री : 'आपको' कोई गालियाँ दें, उस समय आपका 'भाव' बदल जाता है।
प्रश्नकर्ता : गालियाँ दीं, वह क्या कहलाता है?
दादाश्री : वह नोकर्म कहलाता है। कोई गालियाँ देता है वह तो नोकर्म में आता है लेकिन 'आपकी' वह (मूल) 'दृष्टि' बदल जाती है। तो उसमें से द्रव्यकर्म उत्पन्न होते हैं। जो रौद्रभाव उत्पन्न होते हैं वे भावकर्म कहलाते हैं और रौद्रभाव होते समय अंदर जो मूल मशीनरी, यह लाइट (दब जाती/कम हो जाती) दिखती है, 'दृष्टि' बिगड़ती है तो वह द्रव्यकर्म है। नोकर्म के समय आपकी (महात्माओं की) 'दृष्टि' नहीं बिगड़ती। भाव उत्पन्न होते हैं फिर भी 'दृष्टि' नहीं बिगड़ती क्योंकि हिंसक भाव नहीं है। 'दृष्टि' नहीं बिगड़ती, इसलिए चार्ज नहीं होता। दृष्टि बिगड़े, तभी चार्ज होता है। अगर दृष्टि नहीं बिगडे, तो जो भावकर्म हए वे भी डिस्चार्ज हैं। भावकर्म और मूल दृष्टि दोनों बिगड़ जाएँ, तब उसे चार्ज कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : भावकर्म, द्रव्यकर्म और नोकर्म से रहित कैसे रहा जा सकता है?
दादाश्री : जब तक सम्यक् दृष्टि नहीं हो जाती तब तक भावकर्म,