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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
में बहुत टाइम लगेगा, यह ऐसी चीज़ है। और यदि ज्ञानी यह समझाएँ तो आसानी से समझ में आ जाएगा इसलिए दर्शन और ज्ञान लोगों को समझ में नहीं आया। जहाँ दर्शन और ज्ञान की बात आए, वहाँ पर फिलॉसॉफर भी नहीं समझ पाते। जहाँ पर भी देखो, यह दर्शन और ज्ञान समझ में नहीं आया है।
प्रश्नकर्ता : यह विषय बुद्धि से परे है न?
दादाश्री : हाँ, यह विषय बुद्धि से परे है! अब भेद तो ज्ञानगम्य है इसके बावजूद भी आपको बुद्धि से कुछ समझ में आए इसीलिए उदाहरण देकर बताता हूँ।
अब यह दर्शन और ज्ञान, वे आपको विस्तार से समझ में आएँ इसलिए उदाहरण देता हूँ। उदाहरण दूंगा तो बुद्धि में बैठेगा और आपको ऐसा लगेगा कि 'नहीं, यह बात सही है।' बाकी का सब तो मैं ही देख सकता हूँ।
हम सब यहाँ पर बैठे हों और उस रूम में कोई आवाज़ हो तो कोई क्या कहेगा, 'कुछ है।' अब बिल्ली है या कुत्ता है, वह क्या पता चले? लेकिन 'कुछ है' उतना तो ये लोग जान सकते हैं या नहीं जानते! नहीं जानेंगे? 'कुछ है,' ऐसा पता चलता है?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : ‘क्या है' वह शायद पता न चले, कुत्ता या बिल्ली, इनमें से कौन है वह कैसे कहा जा सकता है? या फिर शायद छोटे बच्चे ने भी हाथ मारा हो! लेकिन 'कुछ है' ऐसा पता चलता है या नहीं चलता? आपको भी पता चलता है? आपको भी पता चलता है?
प्रश्नकर्ता : हाँ, दादा।
दादाश्री : उसे क्या कहते हैं? वह ज्ञान कहलाता है या दर्शन? या फिर दृष्टि कहलाएगी? 'कुछ है' ऐसा जो ज्ञान हुआ, उसे क्या कहेंगे? सभी कहते हैं, 'कुछ है' लेकिन अगर हम पूछे कि 'क्या है' वह बताओ न!