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[ ३.१] 'कुछ है' वह दर्शन, 'क्या है' वह ज्ञान
दर्शन और ज्ञान बुद्धिगम्य विवरण प्रश्नकर्ता : ज्ञेय और दृश्य में क्या फर्क है? वह समझाने की कृपा कीजिए।
दादाश्री : तुझे क्या समझ में आया? ज्ञेय और दृश्य?
प्रश्नकर्ता : ज्ञेय अर्थात् हमें सिर्फ अंदर से जानना होता है। दृश्य हम बाहर देख सकते हैं।
दादाश्री : ऐसा नहीं है। भगवान ने दर्शन और ज्ञान दो शब्द दिए हैं। 'साहब, क्या सिर्फ ज्ञान रखा होता तो नहीं चलता? ज्ञान में सब आ ही जाता है न, दर्शन वगैरह सबकुछ?' तो कहते हैं, 'नहीं। इसका भेद समझ में नहीं आएगा। ज्ञान के बिना दर्शन से कितने ही हल आ जाते हैं। अब ज्ञान-दर्शन और चारित्र, इनमें दृष्टा दृश्य को देखता है और ज्ञाता ज्ञेय को देखता है। एक ही चीज़ है, ज्ञाता-दृष्टा खुद ही है' लेकिन जब दृश्य देखता है तब वह दृष्टा कहलाता है। जब ज्ञेय को देखे तब ज्ञाता कहलाता है। अब दृश्य किसे कहेंगे? यह एक बड़ा प्रश्न खड़ा होता है।
ऐसा है न कि 'देखा' यानी यह तो इन आँखों से देखा, उसे देखना' नहीं कहते। वह तो संसार के लिए देखना कहलाएगा लेकिन इसमें क्या देखना है और क्या जानना है? इसमें दर्शन और ज्ञान कौन से है? दोनों अलग क्यों हैं?
अर्थात् दर्शन और ज्ञान दो अलग चीजें हैं। दुनिया को इसे समझने