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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
दादाश्री : नहीं, चार्ज नहीं होगी। आप मेरी आज्ञा का पालन करते हो इस वजह से वह बस उतनी ही चार्ज होगी, तो एक जन्म के लिए तो पुण्य चाहिए या नहीं चाहिए?
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प्रश्नकर्ता : आज्ञा पालन करने में जो भी कर्तृत्व का भाव आता है, क्या उसके परिणाम स्वरूप ये पुण्यानुबंधी पुण्य बंधते हैं?
दादाश्री : बंधते हैं न ! अगला जन्म चाहिए न ! अगले जन्म में सीमंधर स्वामी के पास जाने के लिए पुण्यानुबंधी पुण्य चाहिए न ! तो जन्म होते ही वहाँ पर पिताजी आपके लिए कपड़े, राजमहल जैसा बंगला तैयार रखेंगे। बंगला बनाना नहीं पड़ेगा । बंगला बनाना, वह पुण्यानुबंधी पुण्य नहीं कहलाता। तैयार बंगला होता है और भाई वहाँ पर आते हैं। सबकुछ तैयार होना चाहिए या नहीं होना चाहिए? और फिर जब दर्शन करने जाएँ तो घोड़ागाड़ी की ज़रूरत पड़ेगी । यह सब चाहिए न?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : अरे..... रोज़ गाड़ी सीमंधर स्वामी के पास छोड़कर जाएगी और वापस लेने भी आएगी।
अर्थात् यह विज्ञान है, आप यदि एक्ज़ेक्ट हिसाब निकाल लो तो बहुत सुंदर विज्ञान है । सैद्धांतिक और अविरोधाभासी । विरोधाभास किसी जगह पर नहीं है!