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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) प्रश्नकर्ता : अर्थात् नोकर्म, चौबीसों घंटें जो कुछ भी हम करते हैं, वे हैं?
दादाश्री : ये सभी कर्म फल हैं लेकिन।
प्रश्नकर्ता : यह प्रकृति जो क्रिया करती है उसे आप दृष्टाभाव से देख सको, वही नोकर्म है?
दादाश्री : बात यही है कि प्रकृति जो सब करती हैं न, जिनमें भावकर्म नहीं हैं, वे सभी नोकर्म हैं।
नोकर्म ऐसी चीज़ है कि जो कर्म, जिन्हें हाजत कहा जाता है न, वे सभी नोकर्म हैं। इंसान की हाजतें। हाजत समझ में नहीं आया? खाए बगैर चलता है हम सब को? ज्ञानी को भी खाना पड़ता है न? तो क्या संडास गए बगैर चलता है? तो क्या सोए बगैर चलता है?
प्रश्नकर्ता : चलेगा ही नहीं।
दादाश्री : तो फिर क्या पानी पीए बगैर चलता है? ये सब हाजतें हैं। ये शरीर की जो हाजतें हैं, वे सब नोकर्म कहलाते हैं।
हमें होटल का नहीं खाना हो लेकिन फिर भी अगर भूख लगे और खाने को कुछ नहीं मिल रहा हो तो फिर किसी भी होटल में घुसकर खाना पड़ता है, ये सब नोकर्म हैं। अपनी इच्छा नहीं हो फिर भी अपना नहीं चलता। जिन्हें किए बगैर कोई चारा नहीं है, वे सभी नोकर्म हैं। सभी कुछ जो अनिवार्य है। ये सभी नोकर्म कहलाते हैं।
विवाह करते हैं, शादी करते हैं, बच्चे होते हैं, वह सब नोकर्म है। जो राग-द्वेष रहित क्रियाएँ हैं, वे सभी नोकर्म हैं। भगवान ने इन्हे नोकर्म इसलिए कहा है कि अगर 'तू' इन्हें बगैर राग-द्वेष के करेगा तो ये कर्म तुझे चिपकेंगे नहीं। राग-द्वेष सहित करेगा तो तुझे चिपकेंगे।
अकर्ता है इसलिए नोकर्म अर्थात् यदि तू मोक्षमार्ग पर जा रहा है तो ये कर्म तुझे