________________
[२.१३] नोकर्म
३११
ये सभी नोकर्म हैं। पानी पीते हैं, उठते हैं, बैठते हैं, आते हैं, आवाज़ देते हैं, उबासी लेते हैं, ऐसे सब बहुत तरह के नोकर्म हैं।
ये कर्म तो सब आँखों से देखे जा सकते हैं। संसार में ये सभी जितने भी कर्म हैं, वे सभी नोकर्म हैं। कोई भक्ति करता है तो वह भी नोकर्म है। स्वाध्याय करता है, वह भी नोकर्म है। उपाश्रय जाता है, वह भी नोकर्म है। सभी नोकर्म हैं। कोई व्यक्ति संध्या पूजा पाठ करता है, माला करता है तो वे सभी नोकर्म हैं। व्याख्यान दे रहा हो वह भी नोकर्म और व्याख्यान सुन रहा हो वह भी नोकर्म है। इस नोकर्म को समझने जैसा है। यदि नोकर्म को समझ लें न तो बहुत हो गया, नोकर्म समझ में आ सके ऐसा नहीं है। यदि ज्ञानी से नोकर्म को समझ ले न तो पूरे जगत् को जीत लेगा।
शास्त्रकारों ने क्या लिखा है? नोकर्म अर्थात् नहीं जैसे कर्म।
सुबह उठना, वह नोकर्म है। 'मैं उठा और तू उठा' ऐसा कहते ज़रूर हैं हम लोग, और जगत् के लोग जब ऐसा बोलते हैं न, तो वे जो बोलते हैं न, इन नौकर्मों में से तो उससे वापस बीज पड़ते हैं। नोकर्म में से बीज पड़ते हैं। वर्ना ये बीज पड़े ऐसे नहीं हैं, हमें बीज डालना हो तो डाल सकते हैं, वर्ना यदि वहाँ पर जागृति रहे, ज्ञान रहे तो कुछ लोग नहीं भी डालते और अगर डाल भी दिए हों तो वापस ले लेते हैं। इतना सब होता है वहाँ पर। अतः उठते हैं तभी से, उठे वह भी नोकर्म है, फिर देखा वह सारा भी नोकर्म है, सुना वह भी नोकर्म है। फिर दातुन किया, चाय पी, नाश्ता किया, फिर जो कुछ भी होता है, वह सब नोकर्म है। फिर अगर आपका कोई ग्राहक आए और अगर वह कोई डखोडखल (दखलंदाजी) कर जाए तो वह भी सारा नोकर्म है।
यह तो दादा की बलिहारी कि जिन्होंने कर्म की समझ दी। लोगों को पता ही नहीं है कि ये नोकर्म क्या हैं? किस तरह के हैं? इसका पता ही नहीं है इसीलिए उलझते रहते हैं बेचारे कि यह इस तरह से फल देगा तो?! नहीं, यह ऐसा है ही नहीं कि उगे। उसमें दखल मत करना तू। बहुत अच्छा है। यह खाना ही चाहिए' ऐसी सब दखलंदाजी नहीं करना। खा न शांति से! बीज तो, जब क्रोध-मान-माया-लोभ करते हैं तभी पड़ते हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ, वही कर्म का बीज हैं।