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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
नोकर्म क्या है, आपको वह समझ लेना है। नोकर्म का मतलब क्या है? संसार के जो ये सभी व्यवहार करते हो न, जो कुछ भी 'व्यवस्थित' करता है, वे सभी नोकर्म हैं।
प्रश्नकर्ता : जिन्होंने ज्ञान नहीं लिया है, उनके लिए भी वे नोकर्म कहलाएँगे?
दादाश्री : उनके लिए भी नोकर्म कहलाएँगे लेकिन उन्हें रहता है कि 'मैं कर रहा हूँ' इसीलिए उनके नोकर्म उगते हैं और हम सब को ऐसा रहता है कि 'मैं नहीं कर रहा हूँ और व्यवस्थित कर रहा है' इसलिए नहीं उगते। यानी कि संसार बंद हो गया। कॉज़ेज़ बंद हो गए। इसलिए कर्म गिर पड़े। जब तक आधार देते हैं, तभी तक कर्म हैं। खुद यदि आधार नहीं दे तो कोई नाम देनेवाला भी नहीं है। जो करता है, उसके लिए कहते हैं कि यह कर रहा है तो फिर हमें कोई परेशानी नहीं है। कर नहीं रहा है और अगर कहे कि 'मैं कर रहा हूँ' तो बंधेगा। इसीलिए तो नरसिंह मेहता ने, कहा है न कि, 'हुं करूँ, हुं करूँ, ए ज अज्ञानता।' (मैं कर रहा हूँ, मैं कर रहा हूँ, यही अज्ञानता है।)
प्रश्नकर्ता : दादा, हम जो आधार दे रहे थे, उसी को ज्ञान के समय आपके चरणों में रख दिया।
दादाश्री : जो आधार देनेवाला था, उसी को रख दिया कि यह सब आपको सौंपा साहब। वह जो आधार देनेवाला था न, उसी को सौंप दिया।
सभी चारित्रमोह हैं नोकर्म प्रश्नकर्ता : चारित्रमोह में जो चीजें हैं, वे सभी नोकर्म हैं?
दादाश्री : चारित्रमोह के जो सभी कर्म हैं, वे सभी नोकर्म हैं। लोग जिसे कहते हैं कि 'ये भाई, बदले नहीं है। वैसे के वैसे हैं,' उसे भगवान ने नोकर्म कहा है। और नोकर्म अर्थात् जो भोगने ही पड़ते हैं।
प्रश्नकर्ता : कई बार बाहरवाले पूछते हैं कि आपके इन महात्मा में कोई फर्क नहीं दिखाई देता है।