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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
सकता है? सब्ज़ी-भाजी लेने के लिए लोगों की भीड़ होती है मार्केट में, भीड़ नहीं होती? और जौहरी की दुकान पर कितने लोग होते हैं?
प्रश्नकर्ता : कम।
दादाश्री : बहुत अंतराय कर्म होते हैं । हिन्दुस्तान में अरबोंपति कितने हैं? और गरीब ? निरे गरीब ही हैं न? इसी प्रकार 'यह' चीज़ सभी के लिए नहीं है। हम बता सकते हैं, बस इतना ही । हमें अपनी भावना प्रदर्शित करनी है कि ' भाई, ऐसा है । '
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इस की प्राप्ति के इतने सारे अंतराय होते हैं ! बहुत अंतराय होते हैं, ज़बरदस्त! लोगों के अंतराय टूटते नहीं हैं। लोगों के लक्ष्मी के अंतराय टूट जाते हैं, लाभांतराय टूट जाते हैं, दानांतराय टूट जाते हैं लेकिन ये ज्ञानांतराय और दर्शनांतराय नहीं टूटते । इन दो अंतरायों का टूटना बहुत मुश्किल है।
इसीलिए तो वे यहाँ पर नहीं आते हैं न! आएँ तो काम हो जाए न! अर्थात् जोखिमवाला है । और जो सच्चे होंगे वे प्राप्ति कर लेंगे। जो सच्चे ग्राहक हैं, वे तो कहीं से भी आकर खड़े हो जाएँगे । इसलिए इसमें जल्दबाज़ी नहीं करनी है । इसमें भीड़ नहीं होती ।
वह यहाँ से सीढ़ियाँ उतरकर वापस जा रहा था, तो उसका क्या कारण है? मैंने सभी से कहा भी कि 'अरे, वह जो व्यक्ति यहाँ आने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ रहा है, पंप मार-मारकर चढ़ा होता है लेकिन अभी उतर जाएगा,' ऐसा भी कहा था । ऐसा मुक्ति का मार्ग शायद ही कभी प्रकट होता है, लेकिन तरह-तरह के अंतराय होते हैं । यह जो हो रहा है, वह सब करेक्ट ही है। कैसा है? देखो न, वह व्यक्ति उठकर गया न । नकद देने की बात की फिर भी उठकर चले गए, लेकिन करेक्ट है न! इनकरेक्ट नहीं है न! हमें तुरंत ही समझ में आ जाता है कि यह करेक्टनेस आई। ये अंतराय कर्म खड़े हो गए। मुझे पहले तो ऐसा लगा था कि, 'यह अंतराय कर्म कहाँ से आया?' अर्थात् जब तक वे बैठे रहें, तब तक तो हम ज्ञान नहीं दे सकते थे न! वे कहें कि, 'मुझे इस तरह का चाहिए, मुक्त होना है, ' तो दिया जा सकता था। बंधने के कामी को मोक्ष का ज्ञान नहीं दिया जा सकता न?