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[२.८] गोत्रकर्म
लोकपूज्य, लोकनिंद्य गोत्र कितने हुए? प्रश्नकर्ता : छः दादाश्री : अब सातवाँ है गोत्रकर्म, वह भी मोमबत्ती में लेकर आए
है।
यहाँ पर जो सब लोग आते हैं, वे मुझे नमस्कार करके बैठते हैं न? मुझे क्या कहने जाना पड़ता है? वह कौन करवाता है? गोत्रकर्म करवाता है। यह उच्च गोत्र होता है। और कोई आया तो, 'तू क्यों आया है? तू चला जा यहाँ से।' वहाँ पर नीच गोत्र है। गोत्रकर्म, वह तो द्रव्यकर्म कहलाता
है।
___ अब उच्च गोत्र हो, तो वह लोकपूज्य होता है। लोग तारीफ करें, ऐसा गोत्र होता है। और नीच गोत्र का मतलब क्या है? लोग निंदा करते हैं उसकी। उस गोत्र की निंदा करते हैं। लोग नहीं कहते हैं कि 'अरे भाई. हलके लोगों के साथ खड़े मत रहना।' और दूसरा है, अगर अच्छे परिवार में जन्म हुआ हो तो उसे उसका अहंकार रहता है। खराब परिवार में जन्म हुआ हो तो उसके मन में ऐसा होता रहता है कि 'हम हल्के हैं।' ये सभी द्रव्यकर्म हैं।
अब इस शरीर में गोत्रकर्म हैं। लोग कहते हैं ये 'रणछोड़ हरगोविंद के बेटे के बेटे हैं, तो लोग समझते हैं कि 'ओहोहो! लोकपूज्य हैं।' लोग