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[२.८] गोत्रकर्म
२४३ बहुत मुश्किल होगी उसमें तो, लेकिन निंद्य नहीं हो जाए तो उत्तम बात है। लोकनिंद्य नहीं होना चाहिए।
तो चाहे लोकपूज्यता नहीं है आपकी लेकिन यह काल ऐसा है कि ऐसी कठिन परीक्षा ली जाती है। अतः आपके इतने मार्क्स बढ़ा दिए जाएँगे
और भगवान भी बढ़ा देंगे, मैं कहता हूँ इसलिए। क्योंकि मैं निष्पक्षपाती रूप से कहता हूँ। मुझे इसमें कोई भी पक्षपात नहीं है। लेकिन अगर तुम्हारे लोकनिंद्य कार्य बंद हो जाएँगे, तो आपका लोकपूज्य में समावेश होगा। भले ही पूजे नहीं जाते फिर भी लोकपूज्य की श्रेणी में आ गए। क्योंकि परीक्षा कठिन है। इसलिए मैंने यह बीच का पद बताया है।
इस काल में लोकपूज्य कम होते हैं। इसलिए दूसरी श्रेणी बताई है कि जो लोकनिंद्य नहीं होंगे उन्हें इस प्रकार से लोकपूज्य मानेंगे। गलतियाँ हो गई हों तो वापस नए सिरे से शुरुआत करेंगे। तो आज अपने से ऐसे कार्य न हों कि जो लोकनिंद्य में आएँ तो बहुत अच्छा कहलाएगा न?
और लोगों में जो लोकपूज्य दिखाई देते हैं न, वे ठीक तरह से नहीं चलते इसलिए वे लोकपूज्य नहीं माने जाएंगे लेकिन उन्हें ऐसा कहा जा सकता है कि ये लोकनिंद्य नहीं हैं। लोकपूज्य कहने जाएँगे तो ये सब कहेंगे कि 'हम लोकपूज्य हैं, हम लोकपूज्य हैं।' सभी पकड़ लेंगे। लोकपूज्य तो हिंदुस्तान में दो या पाँच लोग ही हैं। लोकपूज्य तो होते होंगे? बाकी सब ऐसी क्वॉलिटी के हैं कि लोकनिंद्य हैं। तीसरे प्रकार के ऐसे लोग ज्यादा हैं कि जो लोकनिंद्य नहीं हैं लेकिन पूज्य तो हैं ही नहीं। पूज्य तो, पत्नी भी नहीं पूजती, घर का कोई बच्चा भी नहीं सुनता तो बाहरवाले कौन पूजेंगे? शिष्य नहीं सुनते तो बाहरवाला कौन पूजेगा?
यह तीसरा वाक्य तुझे पसंद आया? यह खोज है दादा की। वर्ना अभी तो जगह-जगह पर लोकनिंद्य ही हैं न! कुछ न कुछ निंदा होती ही रहती है आज तो। आप को समझ में आया सब? नया शास्त्र निकला है यह।
प्रश्नकर्ता : नेगेटिव नहीं, पॉज़िटिव है सीधा।