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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
है, 'मैं तो गायकवाड़ सरकार हूँ।' वह कुछ नई ही तरह का बोलता है। उस घड़ी शराब का नशा होता है। उसी प्रकार यहाँ पर अज्ञान का नशा हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : क्योंकि ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय, ये चारों ही आवरण अज्ञानता का कारण हैं।
दादाश्री : नहीं, स्वरूप के अज्ञान (स्वरूप की अज्ञानता) की वजह से यह आवरण आया है और स्वरूप के भान की वजह से आवरण टूट जाता है।
डिस्चार्ज कर्म तो महावीर भगवान को भी थे। जब उनके ये चार घातीकर्म नष्ट हो गए, तब केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। कुछ अंशों तक नाश होने पर आत्मज्ञान होता है, संपूर्णतः नाश हो जाए तो केवलज्ञान हो जाता है। फिर भी बाकी के चार अघाती तो रहते हैं।
मूल में है मोहनीय प्रश्नकर्ता : रोंग बिलीफ और इन चार घाती कर्मों के बीच संबंध तो है न?
दादाश्री : दर्शनावरण कर्म को ही रोंग बिलीफ कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : रोंग बिलीफ अर्थात् दर्शनावरण कर्म, तो ज्ञानावरण के लिए कौन सा है?
दादाश्री : दर्शनावरण की वजह से ज्ञानावरण उत्पन्न होता है।
प्रश्नकर्ता : दर्शनावरण में एक्चुअली क्या होता है? यानी कि मूल वस्तु का दर्शन आवृत हो गया है?
दादाश्री : दर्शन आवृत हो गया है, इसीलिए फिर रोंग बिलीफ बैठ गई। राइट बिलीफ थी, उसके बजाय रोंग बिलीफ बैठ गई।
प्रश्नकर्ता : और रोंग बिलीफ से वापस दर्शन आवृत होता जाता है, ऐसा भी है न?