________________
[२.१०] घाती-अघाती कर्म
२६७
बलवान कहा गया है कि सर्व घातीकर्मों को जलाकर भस्मीभूत कर देता
दादाश्री : हाँ, इसलिए इन सभी को, आपको यह ज्ञानाग्नि ही दी है न! आपको यह ध्यान, शुक्लध्यान दिया है इसीलिए वह आपके सभी घातीकर्मों का नाश कर देता है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, वह घातीकर्मों का नाश कर देता है। यदि आप शुद्ध चिद्रूप के ध्यान में आ जाओ तो।
दादाश्री : शुक्लध्यान ही दिया हुआ है। सभी को शुक्लध्यान ही बरतता है और वह जो शुक्लध्यान है, वह इन घातीकर्मों का नाश कर देता
fic
प्रश्नकर्ता : इसीलिए इन चार कर्मों को बलवान लिखा गया है न! यह शुक्लध्यान तो उन घातीकर्मों का नाश कर देता है।
दादाश्री : अगर ऐसा नहीं लिखेंगे तो फिर लोग ऐसा समझेंगे कि 'ओहो, इन्हें तो हम एक झटके में निकाल देंगे, यों पलभर में।' वह तो व्यवहार में ऐसा लिखना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : घातीकर्मों का नाश तो शुद्ध चिद्रूप खुद के शुक्लध्यान से, कर देता है। अब जो नाश करता है, वह प्रक्रिया कौन सी होगी? उदाहरण के तौर पर सूर्य की धूप में अनेक जीवाणुओं का नाश हो जाता है। ऐसा धूप के कारण होता है। उसी तरह इस शुद्ध चिद्रूप के ताप से, उसके प्रकाश से इन अघातीकर्मों का नाश हो जाता होगा न? यह ऐसा है या कैसा है?
दादाश्री : ऐसा नहीं है। खुद के स्वरूप की मूर्छा की वजह से इस विशेषभाव का असर हो गया है तो उससे अजागृति उत्पन्न हो गई। कैसे हुई? इन सभी के सानिध्य में, सामीप्य भाव की वजह से। जैसे कि अगर कोई एक व्यक्ति बड़ा सेठ हो, वह इतनी सी ब्रांडी पी ले, तो फिर? फिर खुद का सर्वस्व भान खो देता है, उसे फिर कुछ और ही उत्पन्न हो जाता