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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
इन सभी आवरणों का काफी कुछ भाग खत्म हो जाता है लेकिन कुछ लोगों को यह अंदर पचता नहीं है। विज्ञान नहीं पचता। जैसे-जैसे पचेगा न वैसेवैसे खुलासा होता जाएगा। एकदम से नहीं पचता न! जैसे-जैसे पचता जाता है वैसे-वैसे खुलासा होता जाता है। लेकिन अगर सत्संग में पड़ा रहे तो उसकी गाड़ी रास्ते पर आ जाएगी। क्योंकि यह सत्संग ऐसी चीज़ है कि इससे दिनोंदिन उसका आवरण टूटता ही जाता है, लेकिन परिचय की ज़रूरत है।
द्रव्यबंध - भावबंध
प्रश्नकर्ता : द्रव्यबंध और भावबंध के बारे में समझाइए।
दादाश्री : अगर इंसान ने यह ज्ञान नहीं लिया हो तो वह जो-जो करता है, उन सभी से भावबंध होता है। अज्ञान की उपस्थिति में जो कुछ भी किया जाता है वह भावबंध है और इस भावबंध में से द्रव्यबंध परिणामित होता है। वहाँ पर जो आठ कर्म हैं, उन्हें द्रव्यकर्म का बंध ही कहते हैं। द्रव्यकर्म उसी को कहते हैं। अन्य कोई द्रव्यकर्म हैं ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : वहाँ पर क्रमिक मार्ग में शास्त्रों में, जो आठ कर्म हैं उन सभी रूपी कर्मों को द्रव्यकर्म कहते हैं। कार्मण वर्गणा(कारण परमाणुओं का समूह) का जो समूह होता है उसमें जब आत्मा एकाकार हो जाए, अध्यवसाय (मन में परमाणुओं का फूटना) एकाकार हो जाए तो उसे द्रव्यबंध कहते हैं। अतः वहाँ पर द्रव्यबंध को रूपी कहा गया है और भावबंध को अरूपी कहा गया है।
दादाश्री : क्या ज्ञानावरण दिख सके ऐसा हैं? दर्शनावरण नहीं दिखाई देते हैं, अंतराय नहीं दिखाई देते, वे ही वास्तविक द्रव्यकर्म हैं। ये आठों कर्म जो हैं, वे ही द्रव्यकर्म हैं। भगवान की भाषा को समझना हो तो भगवान की भाषा में ये द्रव्यकर्म हैं। और इन द्रव्यकर्मों की वजह से क्रोधमान-माया-लोभ हैं। द्रव्यकर्म की पट्टियाँ हैं। दर्शनावरण की पट्टियाँ हैं इसीलिए वह टकराता है बेचारा। टकराता है इसीलिए चिढ़ता है। उसी से भावकर्म बंधते हैं।