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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
सुख मिला है, वह दूसरे भी पाएँ।' और सिर्फ यही एक चार्ज भाव था लेकिन सभी को वह भाव नहीं होता न। बाकी सभी को तो साधारण इच्छा रहती है कि जगत् का कल्याण हो। 'जगत् का कल्याण करना' ऐसा कोई उनका मूल भाव नहीं होता। कुछ ही लोगों में होता है ऐसा। चारों तरफ से ऐसे संयोग हों तब ऐसा होता है। सभी को नहीं होता। अतः हमारी तो ऐसी भावना होनी चाहिए कि 'यह जो सुख मैंने पाया है वे सभी पाएँ,' और कुछ भी नहीं। बाकी का सब तो मुफ्त में लेकर आए हैं न? जो बैंक में जमा किया हुआ था, वह क्रेडिट ले रहे हैं। और उसका उपयोग किया तो उसमें क्या तीर मार दिया? तो कल्याण में हमें कुछ न कुछ हिस्सा तो लेना चाहिए न!