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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
दादाश्री : ये आठों कर्म मोहनीय के रूप में हैं। मोहनीय गया तो सभी कुछ गया।
प्रश्नकर्ता : क्या इन कर्मों की वजह से आत्मा के सभी गुण आवृत हुए हैं?
दादाश्री : हाँ, सभी आवृत हुए हैं।
प्रश्नकर्ता : अगर यह मोहनीय टूट जाएगा, दर्शनमोह टूट जाएगा तो फिर गुण प्रकट होते जाएँगे।
दादाश्री : गुण प्रकट होते जाएँगे। जब पूर्ण रूप से प्रकट हो गए तो, वही केवलज्ञान कहलाता हैं।
कषायों से ही कर्मबंधन प्रश्नकर्ता : चारों घातीकर्मों और कषायों के बीच में क्या संबंध हैं? कषायों की वजह से घातीकर्म बंधते हैं या घातीकर्मों की वजह से कषाय होते हैं?
दादाश्री : अभी हमें क्या हो रहा है? घातीकर्म की वजह से कषाय उत्पन्न होते हैं। अब यदि हम इतना समझ जाएँ कि हम खुद कौन हैं तो फिर इन कषायों को दूर किया जा सकेगा।
प्रश्नकर्ता : दूर किया जा सकेगा या दूर हो जाएँगे?
दादाश्री : दूर हो जाएँगे। अब जब कषाय दूर हो जाएँगे तो घातीकर्म नहीं बंधेगे। अब जब कषाय दूर हो जाएँगे तो सिर्फ घातीकर्म ही नहीं, घाती और अघाती दोनों प्रकार के कर्म नहीं बधेगे।
अक्रम ज्ञान से एकावतारी पद प्रश्नकर्ता : चार घनघाती कर्म किस तरह टूट सकते हैं? इनमें से किस तरह से छूटा जा सकता है?
दादाश्री : छूट ही चुके हो न! फिर अब और क्या पूछना है? चार