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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
रहित भाव-अभाव हों, तो वे लाइक-डिसलाइक हैं। डिस्चार्ज में लाइकडिसलाइक रहता है। अतः भाव-अभाव से चार्ज होता है। लोगों को या तो भाव होता है या फिर अभाव होता है। इन दोनों में से एक ही होता है, फिर तीसरा नहीं होता।
___ कषाय अर्थात् भावकर्म यानी कि 'मैं चंदूलाल हूँ, मैं बनिया' ये सब रोंग बिलीफें हैं, ये सब भावकर्म हैं। और जब 'मैं' चंदूभाई हो गया तो क्रोध-मान-माया-लोभ हो जाते हैं। उनसे कर्म बंधते हैं। अब क्रोध-मान-माया-लोभ, में 'मैं' और 'मेरा' आ गया क्योंकि मान अर्थात् 'मैं' आ गया और लोभ अर्थात् 'मेरा' यानी सभी कुछ आ गया। इनसे ये भावकर्म बंधते हैं और ये द्रव्यकर्म हैं, तो इस जगत् में हमें भावकर्म उत्पन्न होते हैं।
किसी पर क्रोध अपने आप ही हो जाता है न? कोई अपमान करे तो सहन नहीं होता और फिर वह क्रोध करता है। नहीं करता क्रोध? मान को संभालने के लिए क्रोध करता है, पैसों का ध्यान रखने के लिए क्रोध करता है, उसे भावकर्म कहते हैं।
फिर किसी शादी में गया हुआ हो और रिसेप्शनवाला ‘ऐसे' करे तो अपने आप ही रोब में आ जाता है या फिर कोई लात मारनी पड़ती है? बिना लात मारे ही ऐसा हो जाता है न! वह मान नामक भावकर्म है। और किसी ने नमस्ते नहीं किया तो एकदम ठंडा पड़ जाता है वह अपमान नामक भावकर्म है, ठंडा पड़ जाता है या नहीं? अगर कोई बोले नहीं तो?!
अतः यह कपट करना, मोह करना ये सब भावकर्म कहलाते हैं। माया अर्थात् कपट करना। पैसों को सँभालने के लिए, मान सँभालने के लिए कपट करता है, वह भी भावकर्म है।
खाने-पीने का तो होता है, फिर भी लोभ नहीं जाता। पैसों का लोभ करना, घर में बेहद पैसे हैं और अच्छी तरह घर चल रहा है फिर भी परे दिन 'हाय पैसा, हाय पैसा' करे तो उसे क्या कहेंगे? लोभ। और जो अगले जन्म में मिलनेवाला था, उसे आज ही भुना लिया (एनकेश करवा लिया)।