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[ २.१२ ] द्रव्यकर्म + भावकर्म
भावकर्म और द्रव्यकर्म के बीच संबंध
प्रश्नकर्ता : तीन प्रकार के कर्म हैं न, इनमें से भावकर्म और द्रव्यकर्म के बीच में निमित्त - नैमित्तिक संबंध क्या है? वह ठीक से समझा दीजिए ।
दादाश्री : द्रव्यकर्म अर्थात् यह जो शाता-अशाता भोगना पड़ता है न, वह है द्रव्यकर्म । और फिर ये यश-अपयश मिलता है, वह भी द्रव्यकर्म है। बड़प्पन-छोटापन जो मिलता है, वह द्रव्यकर्म है। आयुष्य अच्छा या कम मिलता है, वह द्रव्यकर्म है । अतः ये वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष्य, ये चार और ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय । ये आठों आठ द्रव्यकर्म, इनमें से भावकर्म उत्पन्न होते हैं । भावकर्म किस तरह से उत्पन्न होते हैं ? तो कहते हैं कि जब अशाता वेदनीय आता है, तब बच्चों पर चिढ़ जाता है, वाइफ पर चिढ़ जाता है, शाता वेदनीय आया तो खुश हो जाता है । फिर आता है उच्च गोत्रकर्म, अगर उच्च गोत्रकर्म मिले तो खुश होता है । हल्के प्रकार का गोत्रकर्म हो, तब कोई कहे कि 'आप लोग तो हल्के हो' तो फिर दुःख होता है । अत: इसमें से भावकर्म बंधते हैं ।
प्रश्नकर्ता : वे जो सूक्ष्म परमाणु अंदर पड़े हुए होते हैं, वे क्या द्रव्यकर्म के रूप में पड़े होते हैं?
दादाश्री : हाँ, द्रव्यकर्म के रूप में, सही है। अतः ये सब जो द्रव्यकर्म हैं, तो भावकर्म उत्पन्न होते हैं । लेकिन अगर आप इनके मालिक नहीं बनो तो भावकर्म खत्म हो जाएँगे। आप इसका मालिकीपन मान बैठे