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[ २.९ ] आयुष्य कर्म
देह में बाँधे रखे, वह आयुष्य कर्म
मोमबत्ती में ये कौन से नंबर का हो गया?
प्रश्नकर्ता : सातवाँ ।
दादाश्री : अब बचा आठवाँ । मोमबत्ती खत्म होनी है वह तय है, ऐसा आप जानते हो? ! जलाने के बाद आप जानते हो न कि खत्म हो जाएगी !
प्रश्नकर्ता
दादाश्री : ऐसा आप कैसे जानते हो कि खत्म हो जाएगी? प्रश्नकर्ता : यों धीरे-धीरे कम होती जाती है ।
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हाँ, वह खत्म तो होगी ही ।
दादाश्री : धीरे-धीरे कम होती जाती है इसलिए यह खत्म हो जाएगी। इस तरह जवानी में जो आयुष्य था, वह धीरे-धीरे झुर्रियाँ पड़तेपड़ते-पड़ते खत्म होने की तरफ जा रहा है । यह आयुष्य कर्म है।
अब द्रव्यकर्म किसे कहते हैं? इस शरीर में जो आयुष्य कर्म है, वह द्रव्यकर्म कहलाता है। यह सारे कर्मों को कुछ काल तक हिलने ही नहीं देता। इन सभी कर्मों को भोगने पर ही छुटकारा होता है। यह है आयुष्य कर्म। इसी तरह से कुछ सालों तक शरीर में बाँधकर रखता है । अगर छूटना हो तो भी नहीं छूटने देता। एक तरह की जेल है । वह भी हमें बाँधकर रखती है कि इसमें से छूटना नहीं है। टाइम होने पर छूट जाएँगे, उसे कहते हैं आयुष्य कर्म। केवलज्ञान होने पर भी नहीं छोड़ता ।