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[२.९] आयुष्य कर्म
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आयुष्य बंध गया क्योंकि जवानी में कैसे भी खराब कर्म किए थे, आर्तध्यान-रौद्रध्यान किए इसलिए चौवन साल की उम्र में यह हुआ। आयुष्य कर्म भी बंध जाता है। अगर उस घड़ी वह मर जाए तो वह तिर्यंच योनि में जाता है। अतः आयुष्य बंधन की शुरुआत होने के बाद जो क्रिया होती है न, उस क्रिया का सार आता है। इसलिए अंतिम सालों में इंसान को बहुत जागृत रहना चाहिए। अतः शास्त्र क्या कहते हैं कि चालीस साल तक आपका सबकुछ अज्ञानता में गया लेकिन चालीस साल के बाद आप अच्छे विचार रखो, नहीं तो फोटो खराब पड़ेगा क्योंकि उसके बाद आयुष्य कर्म बंधन की शुरुआत हो जाती है।
फिर बचे सत्ताइस साल! तब अगर किसी अच्छे सत्संग में जुड़ जाए तो फिर पूरा परिवर्तन हो जाता है। तो वह अठारह साल तक सत्संग में आने लगा और उसका गधेवाला फोटो मिट गया और अच्छा सा राजा का फोटो पड़ा। अर्थात् बहत्तरवें साल में फिर से बंधा। बहत्तर साल के बाद नौ साल बाकी रहे तब छः साल बीतने के बाद फिर अठहत्तरवें साल में, छः सालों में उसने क्या किया, फिर से वापस उसने खूब सत्संग जमाया, फिर से देवगति का फोटो पड़ गया। पिछला फोटो मिट गया। अब तीन साल बचे न? तो वापस जो उल्लासपूर्ण परिणाम थे न, वे मंद पड़ गए। शुरू-शुरू में बहुत उल्लास होता है न, उस घड़ी अच्छा आयुष्य बंध जाता है। उसके बाद वापस मंद हो जाता है, तब अस्सी साल की उम्र में वापस मनुष्य का आयुष्य बंधा।
अब एक साल बचा, आखिरी साल। उसके अस्सी साल और आठ महीने हुए कि वापस फिर से बंधता है। अब चार महीने बचे। शेष एक सौ बीस दिन बचे, उसमें से जब वापस चालीस दिन बाकी बचें तब फिर से बंधता है। जो चालीस दिन बचे, उसमें से छब्बीस दिन बीतने के बाद वापस तीसरा आयुष्य बंधता है, फिर बत्तीस घंटे बचे। बत्तीस घंटे में, बाईस घंटे बीतने पर वापस फिर से आयुष्य बंधन होता है, ऐसे करते-करते अंतिम तीन घंटे बचे। उसमें वापस दो घंटे बीत जाने पर फिर से बंधता है। चालीस मिनट के बाद फिर से बंधता है, तेरह मिनट के बाद फिर से बंधता है।