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[२.९] आयुष्य कर्म
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इसलिए घर वापस आ गए आराम से! अज्ञानी के मन में ऐसा हो जाता है कि अब खत्म! अब हो चुका। 'जो मर रहा है वह 'मैं ही हूँ' ऐसा भान है, इस वजह से खत्म हो जाता है।
आठों कर्मों का बंधन प्रतिक्षण
प्रश्नकर्ता : आयुष्य के अलावा बाकी के सात कर्म समय-समय पर बंधते हैं, तो आप समझाइए न कि वह किस तरह से है? आपकी भाषा में समझाइए।
दादाश्री : आयुष्य कर्म भी बंधता है, और सात कर्म ही क्यों, आठों कर्म बंधते हैं।
प्रश्नकर्ता : आयुष्य कर्म तो जीवन में तीन बार ही बंधता है न, हर एक समय पर नहीं न?
दादाश्री : एक-एक समय पर सभी कर्म बंधते हैं। वह तो नाम अलग रखे हुए हैं, बंध के तीन विभाग किए हैं।
प्रश्नकर्ता : वे किस तरह बंधते हैं? वह ज़रा स्पष्ट समझाइए न!
दादाश्री : दूसरे कर्मों का बंधन होता है न, उसके साथ आयुष्य कर्म बंधता ही है। उस कर्म के आयुष्य को भी आयुष्य कहते हैं। कर्म पूरा हो जाए तो उसे क्या कहते हैं? अर्थात् यह सब आयुष्य ही कहलाता है। आयुष्य कर्म ही बंधते हैं।
प्रश्नकर्ता : एक ही जन्म में देवता का आयुष्य बंध जाए उसके बाद वापस नर्क का आयुष्य भी बंध सकता है?
दादाश्री : नहीं, वह आयुष्य अलग है। वह तो उसका रूपक आया। वह तो फिर कुछ दो तिहाई जिंदगी बीतने के बाद, जब एक तिहाई बाकी रही, तो उस समय में उसे कितनी ही बार आयुष्य का बंध पड़ जाता है। पाँच-सात-दस बार बंध पड़कर अंत में उसका आयुष्य पूर्ण हो जाता है। साठ साल का आयुष्य हो तो चालीस साल में पहला आयुष्य बंधता