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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
इन उल्टी शक्तियों से संसार खड़ा हो गया। अब सीधी शक्तियाँ इतनी ज़्यादा हैं कि सभी विघ्नों को तोड़ दें। इसीलिए तो हम वह वाक्य बुलवाते हैं, 'मोक्ष में जाते हुए विघ्न अनेक प्रकार के होने से उनके सामने मैं अनंत शक्तिवाला हूँ।' ज्ञाता-दृष्टा रहने से तमाम विघ्नों का नाश हो जाता है। वर्ना मोक्ष तो यह रहा, आपके पास ही पड़ा है। मोक्ष कहाँ दूर है! अंतराय पड़े हैं बीच में।
प्रश्नकर्ता : 'आत्मा2 अनंत शक्तिवाला' है, तो फिर उस पर अंतराय किस आधार पर आ गए हैं?
दादाश्री : 'हम' ही हैं उन अंतरायों को खड़े करनेवाले, हम ही हैं डालनेवाले। अन्य किसी की दखलंदाजी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन कौन सी रोंग प्रोसीजर से आत्मा की अनंत शक्ति पर अंतराय आ गए?
दादाश्री : इन सभी रोंग बिलीफों से। क्या रोंग बिलीफ एक ही तरह की है? 'मैं मोटा हूँ' वह भी रोंग बिलीफ है, 'मैं पतला हूँ' वह भी रोंग बिलीफ है, 'मैं लंबा हूँ, काला हूँ, गोरा हूँ' कितनी तरह की रोंग बिलीफें हैं! जितने शब्द, उतनी ही रोंग बिलीफें हैं। हाँ! इतनी रोंग बिलीफें हैं। इन सब को जब पार कर लेंगे उसके बाद राइट बिलीफ खड़ी होगी। ___आत्मा की चैतन्य शक्ति किस से आवृत हो जाती है? यह चाहिए
और वह चाहिए। लोगों की ज़रूरतें देखकर 'हम' भी सीख गए उनका ज्ञान। इसके बिना नहीं चलेगा। मेथी की भाजी के बगैर तो चलेगा ही नहीं। ऐसे करते-करते फँस गए! आत्मा अनंत शक्तिवाला है, उस पर बार-बार पत्थर डालते गए!
ऐसा है न, नाली बह रही हो तो, उसमें पानी जाने की शक्ति तो बहुत है। नाली भी अच्छी है, लेकिन अगर किसी ने बीच में एक भी पत्थर डाल दिया तो हम समझ जाएँगे कि यह स्पीड से क्यों नहीं बह रहा है?