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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
महत्वकांक्षा पूरी करने के लिए तो उसकी फाउन्डेशन बनाता है। बहुत पक्का होता है वह । जिस लाइन में हो उस लाइन में महत्वाकांक्षी । धर्म में हो तो धर्म में महत्वाकांक्षी और संसार में हो तो संसार में महत्वाकांक्षी।
प्रश्नकर्ता : यह समझाइए न । फाउन्डेशन किस तरह मज़बूत करता
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है?
दादाश्री : हाँ, लेकिन धर्म में हो तो धर्म में करता है और संसार में हो तो संसार का करता है । धर्म में हो तो, अरे ! वह, सुबह - सुबह पाँचसात साधुओं के दर्शन कर आता है, फलाना कर आता है, पाँच-दस जगह पर मंदिरों में दर्शन कर आता है, ऐसा कर आता है, वैसा कर आता है । ऐसा सब कर आता है। हर प्रकार से बहुत पक्का होता है वह तो । सभी फाउन्डेशन मज़बूत कर देता है । फिर चिनाई होती रहती है दिनों-दिन और अंत में वह तैयार कर देता है ।
और कुछ लोगों के कान मोटे होते हैं न, वे सभी व्यवहार में बहुत सतर्क रहते हैं। मौज-मज़े करना और आनंद करना और मज़े करना, बस इसके लिए पैसे इकट्ठे करते हैं, संसार सुख भोगने के लिए। अंदर कितनी ही प्रकार की इच्छाएँ रहती हैं
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इस काल में कान और नाक देखने योग्य नहीं हैं। कान भी इतनेइतने चिपके हुए होते हैं और नाक भी इतने इतने चिपके हुए होते हैं। ज़रा समझदार हो जाएँ और इस तरफ मुड़ें तो हमें समझना चाहिए कि बहुत अच्छा हुआ भाई ।
प्रश्नकर्ता : किसी का चेहरा देखकर आप उसकी पूरी-पूरी स्टडी करें तो पता चल जाता है?
दादाश्री : ना, हम कहाँ देखने जाएँ ऐसा सब। इस काल के लोगों के चेहरे देखने जैसे हैं ही नहीं ।
अंग-उपांग सब बहुत यों एक्ज़ेक्ट फिटनेस लाएँ, ऐसे । गप्प नहीं