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[२.७] नामकर्म
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है, ठीक हो भी जाता है लेकिन ठीक हो ही जाए, उसकी श्योरिटी नहीं है। यह क्या है, उसका मेरे साथ का हिसाब और मेरा यशनाम कर्म। नहीं तो भला केन्सर कहीं ठीक होता होगा? ! केन्सर का मतलब ही है केन्सल। अब उनमें से पाँच प्रतिशत बच जाते हैं तो वह बात अलग है।
इसलिए हम कहते हैं न, यह हमारा यशनाम कर्म है। यह भारी नामकर्मवाला है, इसीलिए लोगों को ठीक हो जाता है। चमत्कार होता है न, क्योंकि भारी यशनाम कर्म है!
यश-अपयश किस आधार पर? प्रश्नकर्ता : यशकर्म किसे मिलता है और अपयश कर्म किसे मिलता है, कैसा कुछ किया हो तब?
दादाश्री : हाँ। यशकर्म किसे मिलता है कि जिसे 'मेरा' करने की इच्छा नहीं है। कैसे सब लोगों का भला हो, कैसे सब लोगों को लाभ हो, इस प्रकार सब लोगों के लिए ही जीवन जीए न, तब यशनाम कर्म मिलता है और खुद के लिए जीवन जीए तो उसे अपयश नामकर्म । काम करने पर भी यश नहीं मिलता। जगत् तो काफी कुछ खुद के लिए ही जीता है न? वह तो, शायद ही कोई औरों के लिए जीता है न!
हमें यशनाम कर्म क्यों मिला है? सभी को हम संतोष देते हैं, उसी की वजह से इतना बड़ा यशनाम कर्म है, ज़बरदस्त यशनाम कर्म है। (ऐसा तो) होता ही नहीं है न! बहुत बारीकी से देखने की चीज़ है। अमरीका में जिनके यहाँ रहें न, उन्हें मेरी वजह से चार आने का भी नुकसान नहीं हों उसका ध्यान रखता हूँ और दूसरा कोई नुकसान कर रहा हो तो उसे कहता हूँ, मैं टोकता हूँ।
प्रश्नकर्ता : यशनाम कर्म है, उसमें और पुण्य के बीच तात्विक फर्क क्या है?
दादाश्री : बहुत फर्क है। पुण्य तो चाहे कितना भी हो फिर भी उन्हें यश नहीं मिलता। यशनाम कर्म तो, हम किसी के यहाँ अमरीका में घर